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जीवाणु जनित रोग और उपचार jivaanu janit rog aur upchaar

जीवाणु जनित रोग और उपचार हिंदी में jivaanu janit rog aur upchaar in hindi।  जीवाणु रोग क्या है ? । जीवाणु रोगों के नाम । जीवाणु जनित रोगों के लक्षण । जीवाणु जनित रोगों के उपचार। 


जीवाणु जनित रोग :-


जीवाणु जनित के मुख्य रोग क्षय , हैजा , टायफाइड , कुष्ठ रोग , टिटेनस ।


I.   क्षय (तपेदिक) :-



★  क्षय रोग के कारणों की खोज 1882 में रॉबर्ट कॉच ने की थी ।

★  क्षय रोग का रोगजनक माइको बैक्टीरियम ट्यूबर कुलोसिस नामक जीवाणु है ।

★  यह जीवाणु ट्यूबर कुलीन नामक विषैला पदार्थ स्रावित करता है, जो रोग उत्पन्न करने का कारण है।

★  यह रोग संक्रमित व्यक्ति के थूक , खांसी , छींक से निकली सूक्ष्मबून्दों तथा वायु की सहायता से प्रसारित होता है ।

★  प्रभावित अंग - मस्तिष्क , गुर्दे , फेफड़े , आंत्र , गर्भाशय , अस्थि , यकृत आदि ।
★  जांच हेतु मोंटेक्स परीक्षण करवाया जाता है ।

★  T. B. में व्यक्ति भविष्य में नपुंसक भो सकता है ।

★  स्ट्रेप्टो माइसिन :- एक प्रति जैविक (एन्टी बायोटिक औषधि) है जी टी. बी. रोग हेतु सर्वप्रथम विकसित की गई थी।

★  रोकथाम एवम उपचार :- क्षय रोग से बचाव हेतु बी. सी. जी. का टीका शिशु के जन्म के कुछ घण्टो के भीतर अवश्य लगवाना चाहिए ।

★  रोग के उपचार के लिए सरकार अब डॉट्स पद्धति की सलाह देती है। DOTS = Direct observation Treatment, Short course




II.  हैजा :- 



★  हैजा एक अति तीव्र संक्रामक रोग है , जिसका रोगजनक विब्रियो कॉलेरी नामक जीवाणु है , जो संदूषित भोजन एवम जल द्वारा संचरित होता है।

★  घरेलू मक्खी इसका वाहक है।

★  प्रभावित अंग -  छोटी आंत ।


★  लक्षण -  चावल के पानी जैसे दस्त ।



★  शरीर पर चकते और निर्जलीकरण(Dehydration) के समय सोडियम क्लोराइड की कमी हो जाती है । जिसको पूरा करने के लिए (O.R.S.=Oral Rehydration Solution) का घोल पिलाया जाता है।

★  रोकथाम एवम उपचार :-  हैजे के टीके की एक खुराक का असर छ: माह तक रहता है ।

★  रोग होने की दशा में प्याज के रस अथवा नाइट्रो न्युग्रेटिक अम्ल की 10 - 12  बूंदों के साथ 4-5 बूंदे अमृतधारा की जल में मिलाकर पिलाने से रोगी को लाभ मिलता है ।




III.   टायफाइड या मोतीझरा(मियादी बुखार , आंत्र ज्वर):-


★  यह भारत का एक सर्वव्यापी संक्रामक रोग है , जो संदूषित जल , भोजन द्वारा संचरित होता है । घरेलू मक्खियां इस रोग की वाहक है।

★  इस रोग का रोगजनक साल्मोनेला टाईफी जीवाणु है।

★  रोकथाम एवम उपचार :-  बचाव हेतु टायफाइड टीका प्रतिरक्षण करना चाहिए । वैक्सीन का असर तीन वर्षों तक रहता है ।
★   लक्षण -  पेट दर्द , कब्ज , सिर दर्द , तेज ज्वर ।

★  निदान परीक्षण :-  विडाल परीक्षण ।




IV.   कुष्ठ रोग (लेप्रोसी):-



★    कुष्ठ रोग अथवा हेनसन का रोग एक दीर्घकालिक रोग है। इसका रोगजनक माइको बैक्टीरियम लैप्री नामक जीवाणु है।

★  रोगी से सर्वाधिक संक्रमणकारी स्राव रोगी की नाक द्वारा होता है । यह रोग छूने से फैलता है।

★  संक्रमित माता से यह रोग शिशु तक पहुंच सकता है।

★  रोकथाम एवं उपचार :-

★   इस रोग के उपचार में बी.सी.जी.  का टीका उपयोगी मन गया है।

★  वर्तमान में कुष्ठ उपचार की प्रभावी विधियाँ उपलब्ध है ।

★ W.H.O.  द्वारा प्रस्तावित उपचार प्रणाली - M.D.T 1981 से शुरू हुई है। जिससे इसका इलाज संभव हुआ है ।

रासायनिक नाम । IUPAC नाम


V.   टिटेनस Titenus(धनुस्तम्भ , धनुषटंकार ,लॉक जो रोग) :-


★  यह एक घातक रोग है , जिसका रोगजनक क्लोस्ट्रीडियम टिटेनी नामक जीवाणु है , जो मुख्यतः उपजाऊ मिट्टी , गोबर , आदि  में मिलते है तथा शरीर पर उत्त्पन्न घाव , कट आदि के द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाते है।

★  ये आंत्र में एकत्रित होकर वृद्धि करते है । इनसे टिटेनो स्पाजमीन नामक विषैला स्राव उत्त्पन्न होता है , जो रोग का कारण होता है ।

★ रोकथाम एवं उपचार :-  टिटेनस से बचाव हेतु शिशु को डी. पी. टी.  वैक्सीन की खुराक दी जाती है ।

NOTE:-.  हाल ही में WHO द्वारा भारत को टिटेनस मुक्त देश घोषित किया है।



VI.    डिफ्थीरिया /गलघोंटू :-

★  जीवाणु कोरेसी बैक्टिरियम डिफ्थीरिया गले में झूठी झिल्ली बनाता है ।

★  प्रभावित अंग :- श्वासनली में हवा द्वारा फैलता है।

★  बचाव :-    D.P.T. का टीका ।



VII.   प्लेग :-

★  रोगजनक -  पाश्चुरेला वर्जिनिया पेस्टिस ।

★  संक्रमण :-   संक्रमित पिस्सू या चूहे द्वारा फैलता है।



VIII.   सुजाक (गोनेरिया):- 


★  सुजाक रोग का रोगजनक नाईसीरिया गोनोरियाई नामक जीवाणु है, जो यौन सम्पर्क द्वारा संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति तक संचरित होता है ।

★ लक्षण :- जोड़ों में दर्द , मूत्रमार्ग में लालपन , सूजन तथा पस।

★  रोकथाम एवं उपचार :-   इस रोग से बचाव हेतु वेश्यागमन , असुरक्षित एवं अवांछनीय यौन संपर्कों से बचना चाहिए ।

★   रोग के उपचार हेतु प्रोकेईन पेनिसिलीन और स्ट्रेप्टो माईसीन औषधि का उपयोग चिकित्सक की सलाह से किया जाना चाहिए ।




IX.    सिफिलिस या आतशक :-

★  सिफिलिस रोग का रोगजनक ट्रीपोनेमा पेलिडियम नामक जीवाणु है। जो पेचदार (स्क्रू) आकृति का होता है ।

★ रोकथाम एवं उपचार :-   वेश्यागमन , असुरक्षित एवं अवांछनीय यौन सम्पर्कों से बचना चाहिए । रोग होने पर प्रोकेईन पेनिसिलीन अथवा बैन्जेथीन पेनिसिलीन औषधि का उपयोग रोगोपचार में किया जाता है।

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