वायरस जनित रोग:-
- स्वास्थ्य में शारीरिक , मानसिक ,सामाजिक रूप से रुकावट पैदा होना रोग कहलाता है ।
★ विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को मनाया जाता है ।
★ रोग दो प्रकार के होते है:-
1. जन्मजात रोग :-
सभी आनुवांशक या वंशानुगत रोग एनीमिया, हीमोफीलिया , वर्णान्धता ।
2. उपार्जित / अर्जित रोग :-
संक्रामक , असंक्रामक ।
1. संक्रामक रोग :-
वे अर्जित रोग जो संक्रमित व्यक्ति या रोगी से स्वस्थ व्यक्ति तक स्थानांतरित होते है , संक्रामक रोग कहलाते है।
2. असंक्रामक रोग :-
ग्रसित व्यक्ति तक सीमित रहने वाले रोग जो असंक्रामक रोग है।
★ वायु द्वारा फैलने वाले रोग :-
चेचक , खसरा , निमोनिया , बर्डफ्लू , दमा , क्षय/तपेदिक , डिप्थीरिया , कुकरखाँसी , इन्फ्लूएंजा ,जुकाम , रूबेला , कोरोना आदि ।
★ जल /भोजन द्वारा फैलने वाले रोग :-
पेचिस, पोलियो ,हैजा , टायफाइड(आंत्रज्वर), पीलिया आदि।
★ छूने से फैलने वाले रोग :-
छूने से होने रोग के उदाहरण:- चेचक , कुष्ठ रोग आदि ।
★ मानव रोग :- बाह्य तथा आन्तरिक पर्यावरणों के मध्य समन्वय बिगड़ते ही व्यक्ति के शरीर में विकार उत्त्पन्न होना प्रारंभ हो जाते है।
★ प्रतिरक्षा :- रोगों से प्रतिरोध करने की क्षमता को प्रतिरक्षा कहते है । यह हमारे शरीर की वह क्षमता है जो रोगाणुओं जैसे - वायरस , जीवाणु , विषैला पदार्थ आदि से हमारे शरीर की रक्षा करती है।
★ प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है :-
(1) प्राकृतिक या जन्मजात प्रतिरक्षा :- जन्म के समय उपलब्ध प्रतिरक्षा जो माता में उपस्थित प्रतिरक्षियों के स्तर पर निर्भर होती है, उसे प्राकृतिक प्रतिरक्षा कहते है ।
★ प्रतिरक्षी तंत्र के लिए मुख्यतः - श्वेत रुधिर कणिकाएँ उत्तरदायी है, जो रोगाणुओं का भक्षण कर रोगों से हमारी रक्षा करती है।
(2) अर्जित प्रतिरक्षा :- रोगाणु के संक्रमण के फलस्वरूप उत्त्पन्न या बाह्य स्रोतों से प्राप्त प्रतिरक्षा अर्जित प्रतिरक्षा कहलाती है।
★ चेचक , पोलियो आदि अनेक रोगों से बचाव हेतु हमें बाह्य स्रोतों से शरीर में प्रतिरक्षा उत्त्पन्न करनी पड़ती है ।
★ बाह्य स्रोत जैसे टिके लगाकर किसी रोग विशेष के प्रति , प्रतिरक्षा उत्त्पन्न करना ।
★ टीकाकरण या वैक्सीन :- टीकाकरण में व्यक्ति के शरीर में रोग विशेष के दुर्बल अथवा मृत रोगाणु या उनके उत्पाद प्रविष्ट कराए जाते है ।
★ इन्हें नष्ट करने के लिए श्वेताणु विशेष प्रकार के प्रोटीन पदार्थ उत्त्पन्न करते है , जिन्हें प्रतिरक्षी पदार्थ कहा जाता है ।
रोग होने के कारण :-
1. संक्रमण :- सूक्ष्मजीवों के द्वारा शरीर पर आक्रमण , संक्रमण कहलाता है । इसका कारण वायरस , जीवाणु , प्रोटोजोआ आदि सूक्ष्मजीव है । इनके कारण पोलियो , तपेदिक , मलेरिया आदि रोग होते है ।
2. पोषण विकार :- उचित पोषण के अभाव से उत्त्पन्न विकार इस श्रेणी में आते है । जैसे - क्वाशिओरकोर , मेरास्मस आदि ।
3. अंगों की अतिसक्रियता अथवा न्यून सक्रियता :- पीयूष ग्रन्थि की अतिसक्रियता से व्यक्ति का दानवाकार होना तथा न्यून सक्रियता के फलस्वरूप बौनापन , इसके उदाहरण है ।
4. एलर्जी :- कुछ व्यक्तियों का शरीर किन्हीं पदार्थों विशेष जैसे - परागकण , धूप , गंध , औषधि , विशेष रसायनों आदि के प्रति अति संवेदी हो जाता है । ऐसे पदार्थ एलर्जन तथा इनसे उत्पन्न विकार जैसे छींकें आना , आँख-नाक से पानी बहना , शरीर पर चकते या दानों का उभरना आदि एलर्जी कहलाते है ।
5. कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि :- कोशिकाओं की असामान्य , अनियंत्रित तथा अवांछित वृद्धि से शरीर के किसी भाग में। उत्तकों के बने अनियमित पिण्ड को ट्यूमर कहते है ।
★ कैन्सर उतपरिवर्तन जनित रोग कहलाता है।
6. अंगों का अपह्यास :- शरीर के किसी आवश्यक अंग की कार्यक्षमता में ह्रास होने से विकार उत्त्पन्न होना । जैसे - हृदय रोग ।
★ जन्मजात विकार या आनुवांशक रोग - शिशु के जन्म से ही मौजूद विकार , ये आनुवांशिक कारणों अथवा भ्रूणीय विकास की जटिलताओं से उत्त्पन्न होते है । जैसे - हीमोफीलिया , वर्णान्धता आदि ।
I. वायरस जनित रोग :-
★ पीलिया, रेबीज , पोलियो, चिकन पॉक्स , खसरा ।
(i) पीलिया या हेपेटाइटिस :-
★ हेपेटाइटिस या यकृत शोध , यकृत संबंधी रोग है । यकृत खराब होने से रक्त में बिलीरुबिन का स्तर बढ़ जाता है जिससे त्वचा पीली पड़ जाती है। अतः पीलिया हो जाता है इसका रोगजनक हेपेटाइटिस वायरस है जो मुख्यतः संदूषित जल , संदूषित भोजन , संक्रमित सुई आदि संचरण विधियों द्वारा प्रसारित होता है ।
★ यह रोग हेपेटाइटिस A, B ,C, D, E एवं G प्रकार का होता है परन्तु इनमें हेपेटाइटिस A एवं B मुख्य है ।
★ तीव्र ज्वर तथा सिरदर्द के साथ रोगी को मचली , वमन के अलावा शारिरिक कमजोरी मूत्र , त्वचा , नेत्र श्लेष्मा का रंग पीला होना , आदि इस रोग के प्रमुख लक्षण है।
★ रोकथाम एवं उपचार :- वर्तमान में इस रोग के बचाव हेतु हेपेटाइटिस A एवं B के वैक्सीन उपलब्ध है ।
II रेबीज :-
★ इस रोग का रोग जनक रेहब्डो वायरस है । यह रोग संक्रमित कुत्ते , बिल्ली , भेड़िया, बन्दर आदि के काटने से फैलता है।
★ इनकी लार में विषाणु पाए जाते है ।
★ लक्षणों का प्रकट होना , काटे गए स्थान से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की दूरी तथा संक्रमण की तीव्रता पर निर्भर करता है।
★ तीव्र ज्वर , तीव्र सिरदर्द , गले एवं छाती की पेशियों में जकड़ने के साथ दर्द का अनुभव होना , बैचेनी एवं लार का अधिक स्राव इसके प्रारम्भिक लक्षण है ।
★ रोग की तीव्रता बढ़ने पर चहरे से शुरू हुई जकड़न गले तक पहुंच जाती है । जिससे गले में रुकावट होने लगती है । इस कारण रोगी तरल पदार्थ ग्रहण करने में कठिनाई का अनुभव करता है और वह तरल आहार जैसे जल आदि से भयभीत हो जाता है । इसलिए रेबीज को जलभीति या हाइड्रोफोबिया कहते है।
★ रोकथाम एवं उपचार :- कुत्ते द्वारा काटे गए स्थान को पूर्तिरोधी पदार्थों द्वारा अच्छी तरह साफ करना चाहिए । उसके बाद रेबीज का टीका लगवाना चाहिए । रेबीज का टीका लुईस पाश्चर ने बनाया तथा रोग का रोगाणु सिद्धान्त भी दिया । इसका सबसे पहले जेम्स विलसेक को टिका लगा।
III. पोलियो:-
★ इस रोग का रोगजनक एक प्रकार का एंट्रोवायरस है । यह रीढ़ की हड्डी , आंत पर संक्रमण करता है।
★ पोलियो तथा पोलियो मायलेटिस बच्चों में पाया जाने वाला अपंगता कारक है।
★ जिससे माँसपेशियाँ निष्क्रिय हो जाती है जिससे लकवा (Paralysis) हो जाता है।
★ पोलियो का टीका - जोन्स सॉक तथा सेबिन रे ने बनाया था ।
★ जो संदूषित भोजन , दूध एवम जल द्वारा संचरित होता है ।
★ इसके वायरस संदूषित भोजन , जल , मिट्टी आदि के माध्यम से बच्चे के शरीर में प्रवेश कर आंतों में वृद्धि करते है।
★ यहाँ से ये वायरस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंच कर उसे क्षतिग्रस्त कर देते है । जिसके फलस्वरूप पक्षाघात होने के कारण बालक अपंग हो जाता है । इसलिए पोलियो को बाल पक्षाघात भी कहते है।
★ रोकथाम एवं उपचार :- पोलियो से बचाव का सर्वोत्तम उपाय पोलियो की खुराक (ओरल पोलियो वैक्सीन) है ।
NOTE :- मार्च 2014 में WHO द्वारा भारत को पोलियो मुक्त देश घोषित किया गया है ।
IV. चिकन पॉक्स (छोटी माता):-
★ ये बच्चो में होने वाला एक सामान्य रोग है । इसका रोग जनक वेरिसेला जोस्टर वायरस है । जो संक्रमित व्यक्ति के स्पर्श करने से फैलता है । एक बार चिकन पॉक्स (शीतला) हो जाने पर बच्चे में इस रोग के प्रति आजीवन प्रतिरक्षा प्राप्त हो जाती है ।
रोकथाम एवं उपचार :- रोग होने पर रोगी को स्वच्छ वातावरण में और पृथक रखना चाहिए।
★ उसके द्वारा इस्तेमाल किये गए कपड़ो , बर्तनों आदि को निजरमकृत किया जाना चाहिए ।
★ चिकित्सक की सलाह से वेरिसेला जोस्टर इम्यूनोग्लोबिन का इंजेक्शन लगवाया जा सकता है ।
V. खसरा (मीजल्स):-
★यह शिशुओं का एक तीव्र संक्रामक रोग है ।
★ जो परोक्ष संपर्क अथवा वायु द्वारा प्रसारित होता है ।
★ इस रोग का रोगजनक रुबिओला वायरस है।
★ रोकथाम एवं उपचार :- इस रोग से बचाव हेतु मीजल्स का टीका लगाना चाहिए।
VI. चेचक / बड़ी माता :-
★यह रोग वेरिओला विषाणु से फैलता है ।
★ यह सम्पूर्ण शरीर को प्रभावित करता है।
★ चेचक के टीके की खोज - एडवर्ड जेनर ने की ।
★ एडवर्ड जेनर को प्रतिरक्षा विज्ञान का जनक भी कहते है ।
★ प्रारम्भ में हवा द्वारा बाद में छूने से फैलती है । यह रोग जीवन में एक ही बार होता है बाद में इसके प्रति स्वतः प्रतिरक्षा विकसित हो जाती है।
VII. बर्डफ्लू Birdflu:-
★ H5N1 एवियन फ्लू वायरस से फैलता है ।
★ संक्रमण मुर्गे , मुर्गियों के संपर्क में आने से फैलता है।
★ प्रभावित अंग आंख व फेफड़े (शवशनतंत्र) होते है । यह हवा द्वारा भी फैलता है ।
VIII. मम्पस :-
★ इसे गलसुआ या कनफेड भी कहते है।
★ इससे लार ग्रंथि में सूजन जाती है । इस रोग में व्यक्ति भविष्य में। नपुंसक हो सकता है ।
IX. इन्फ्लूएंजा :-
★ ऑर्थो मिक्सो वायरस , वायु द्वारा खाँसने या छींकने से फैलता है ।
★ प्रभावित अंग :- श्वासनली (गला) या फेफड़ा तथा यह रोग पूरे विश्व में एक साथ फैला था । लक्षण सिर दर्द व शरीर में दर्द , सर्दी खाँसी , ज्वर आदि।
उपचार :- टेरामाईसीन प्रति जैविक से
X. डेंगू Dengue :-
★ रोग कारक /रोगजनक अर्बो नामक वायरस से होता है।
★ इस रोग का वाहक मादा एंडीज़ एजिप्टाई मच्छर द्वारा फैलता है । इसे टाइगर मच्छर भी कहते है ।
★ मच्छर की लार ग्रंथियों में पाई जाती है।
★लक्षण बुखार , थकावट , सिरदर्द , जोड़ों में। तीव्र दर्द , अतः इसे हड्डी तोड़ बुखार भी कहते है।
XI. चिकनगुनिया:-
★ इस रोग का जनक अल्फा वायरस है ।
★ इस रोग का वाहक मादा एडीज मच्छर है ।
★ प्रायः यह दिन में काटता है , स्वच्छ पानी में रहता है।
★ लक्षण :- सिरदर्द , बुखार व जोड़ों में तीव्र दर्द होता है ।
★ नोट :- हाल ही में मैक्सिको देश द्वारा डेंगू रोधी टीका डेंग वैक्सिया बाजार में उतारा है।
XII. एड्स AIDS :-
★ एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशियेंसी सिन्ड्रोम है।
★ यहां पर एक्वायर्ड का अर्थ - अर्जित,
★ इम्यूनो डेफिशिएंसी का अर्थ - प्रतिरक्षा तंत्र का ह्रास एवं सिन्ड्रोम
★ लक्षणों का अविर्भाव(लक्षणों का एक विशिष्ट समूह है ।)
★ यह मानव प्रतिरक्षी तंत्र को प्रभावित करता है।
★ एड्स का रोगजनक ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस नामक रेट्रो वायरस है ।
★ HIV संक्रमित व्यक्ति "एच्. आई. वी. पॉजिटिव" कहलाता है।
★ एड्स हेतु परीक्षण - एच्. आई. वी. परीक्षण के परिणाम , संक्रमण प्राप्त कर लेने के लगभग 3 माह पश्चात दृष्टिगोचर होते है। इस समयावधि को 'विन्डो पीरियड' कहते है ।
★ एड्स की जाँच - 1. PCR 2. ELISA
(i) वेस्टर्न ब्लास्ट - प्रोटीन की जांच।
(ii) साउथर्न ब्लास्ट - DNA की जांच,
(iii) नॉर्थन ब्लास्ट - R. N. A. की जांच की जाती है।
★ 1 दिसम्बर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसका प्रतीक लाल फीता है।
★ रोग लक्षण -
1. रोगी को निरंतर बुखार आना , भूख न लगना ।
2. फेफड़ों में संक्रमण जिसके फलस्वरूप खाँसी का आना ।
3. लगातार दस्त होना ।
4. रुधिर प्लेटलेट्स की संख्या में कमी जिससे रक्तस्राव हो सकता है।
5. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की क्षति जिसके फलस्वरूप सोचने , बोलने एवं स्मृति क्षीण हो जाती है।
6. रोग की गंभीरता बढ़ने पर लसिका ग्रंथियाँ सूज जाती है , निरंतर बुखार रहता है एवं शरीर का भार गिरने लगता है।
7. शरीर के किसी भाग में लगातार बनी रहने वाली गाँठ विशेषकर जीभ , मुखगुहा , छाती एवं गर्भाशय में ।
8. शरीर पर बने मस्से के स्वरूप इन परिवर्तन।
9. घाव भरने में समय लगना ।
10. आवाज में खरखराहट एवं निगलने में कठिनाई ।
11. रात में मूत्र विसर्जन व पसीना आना ।
12. त्वचा पर चकते पड़ना।
★ एड्स संचरण के कारण :-
1. संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन समागम तथा यह एड्स फैलने का यह सबसे सामान्य तरीका है ।
2. संक्रमित व्यक्ति का रुधिर , सामान्य व्यक्ति को स्थानांतरित करना।
3. संक्रमित सुई का उपयोग करना ।
4. संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना।
5. एड्स वायरस शरीर से निकले तरल (लार , बलगम , वीर्य) में पाया जाता है ।
★ रोकथाम एवं उपचार :-
1. एक बार प्रयोगी (डिस्पोजेबल) सुई का ही उपयोग करना चाहिए । यदि ऐसा संभव न हो तो सुई को ब्लीच घोल से साफ करना चाहिए। इससे एच्.आई.वी. नष्ट हो जाते है ।
2. वर्तमान में एड्स के उपचार हेतु प्रभावी औषधि या टीका उपलब्ध नही है परन्तु इस दिशा में प्रयास जारी है । फिर भी कई एन्टीरेट्रोवाइरल औषधियों का उपयोग रोग को नियंत्रण में रखने हेतु किया जाता है । एड्स के इलाज के लिए दी गयी औषधियों को एन्टी रिट्रोवायरल ड्रग्स कहते है।
★ एड्स का प्रथम रोगी भारत में 1986 में चैन्नई(मद्रास) में मिला ।
★ वर्तमान में एड्स रोगियों की सर्वाधिक संख्या द. अफ्रीका में है।
★ भारत सरकार ने राष्ट्रीय एड्स नीति - 13 जून 1998 में घोषित की ।
★ एड्स रोग नही बल्कि रोगों का समूह जिसमें प्रतिरक्षातंत्र प्रभावित होता है ।
★ इसमें WBC की संख्या कम हो जाती है ।
XIII. ज़ीका रोग :-
★ यह रोग जीका वायरस से होता है ।
★ यह मादा एडीज एजिप्टाई द्वारा फैलता है।
★ यह विषाणु गर्भस्थ शिशु को लक्ष्य बनाता है।
★ गर्भस्थ शिशु में माइक्रोसिफेली की समस्या इस रोग का सामान्य लक्षण है ।