भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख कारण । भारत छोड़ो आंदोलन के परिणाम । भारत छोड़ो आंदोलन के असफलता के कारण । Bharat chodo andolan | bharat chodo andolan ke parinaam | bharat chodo andolan ke asafalta ke pramukh karan । freedom bharat । फ्रीडम इंडिया । freedom india । quit india movement ।
भारत छोड़ो आंदोलन (quit india movement):-
जिस ढंग से क्रिप्स वार्ता भंग हुई और क्रिप्स को वापस बुलाया गया तथा इन विषय में ब्रिटिश संसद में जो वाद विवाद हुआ , उसने भारतीयों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि सम्पूर्ण क्रिया कलाप एक राजनीतिक धूर्तता मात्र थी , जिसका उद्देश्य विश्व लोकमत की आँखों में धूल झोंकना और अनुमानित असफलता के भार भारतीय जनता के ऊपर लाद देना था । ब्रिटेन के विश्वासघात के ताने बाने का भेद खुलने पर देश निराशा , किंकर्तव्यविमूढ़ता और व्यग्रता के गर्त में डूब गया । यह राष्ट्र के लिए बहुत ही असंतोष की व्यवस्था थी । इस स्थिति को बदलना आवश्यक था । श्री जवाहर लाल नेहरू ने लिखा , "जनता की निराशा को साहस और प्रतिरोध की भावना में बदल जाना आवश्यक था ।" अतः 1942 ई. के आस पास महात्मा गांधी ने उग्रतापूर्वक इस दिशा में सोचना प्रारम्भ कर दिया । भारत छोड़ो आंदोलन उनके मस्तिष्क में जमने लगा और उन्होंने उसे हरिजन में एक लेखमाला लिखकर मुखरित किया ।
भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि या कारण :-
भारत छोड़ो आंदोलन पर दृष्टिगत करने से पूर्व हमें यह देख लेना चाहिए कि यह विचार गांधी जी के मस्तिष्क में क्यो और किन परिस्थितियों में पल्लवित हुआ ।
(1) ब्रिटिश सरकार की दोषपूर्ण नीति :-
सितम्बर , 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। भारत के वायसराय लार्ड लिन लिथगो ने भारतीय नेताओं से सलाह लिए बिना ही भारत की और से जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी । भारतीय नेताओं ने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता का आश्वासन नही दिया जाता , तब तक कांग्रेस भारतीय जनता को ब्रिटिश सरकार से पूर्ण सहयोग करने की सलाह नही दे सकती । परंतु जब सरकार ने इस विषय में कोई निर्णय नही लिया तो ब्रिटिश सरकार के रवैये के विरुद्ध 8 प्रान्तों में कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने अपना त्यागपत्र दे दिया ।
(2) अगस्त प्रस्तावों से निराशा :-
8 अगस्त ,1940 को भारत के वायसराय लार्ड लीन लिथगो ने कांग्रेस से परामर्श किये बिना कुछ प्रस्ताव प्रस्तूत किये जिन्हें अगस्त प्रस्ताव कहा जाता है । परन्तु इन प्रस्तावों से महात्मा गांधी संतुष्ट नही थे । गांधी जी की यह मांग थी कि भारत में तत्काल अस्थायी राष्ट्रीय सरकार स्थापित कर दी जाए । परंतु अगस्त प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया और व्यक्तिगत सत्याग्रह की अनुमति दे दी । लगभग 25 हजार व्यक्तियों को जेलों में बंद कर दिया गया। इस प्रकार गांधीजी तथा सरकार के बीच मनमुटाव बढ़ता गया ।
(3) क्रिप्स मिशन की असफलता :-
30, मार्च 1942 ई. को सर स्टेफोर्ड क्रिप्स ने यह संकेत दिया कि यदि यह बातचीत असफल हो गयी तो वह आगे और कोई बातचीत नही करेंगे । चूँकि क्रिप्स योजना अपर्याप्त थी, आठ भारत के सभी दलों ने इसे अस्वीकार कर दिया । क्रिप्स ने अपनी असफलता की जिमेदारी कांग्रेस पर डाली । भारतीयों को यह विश्वास हो गया कि यह योजना अमरीका और चीन के कारण उत्त्पन्न हुई थी और चर्चिल का भारतीयों को वास्तविक शक्ति देने का कोई इरादा नही है । मौलाना आजाद ने लिखा था, "क्रिप्स और भारतीय नेताओं में जो लंबी बात चली थी , वह संसार को यह सिद्ध करने के लिए थी कि कांग्रेस भारत की सच्ची प्रतिनिधि संस्था नही है और भारतवासियों की फूट की वास्तविक कारण है, जिससे अंग्रेज इनको कोई वास्तविक शक्ति देने में असमर्थ है ।" इस सब बातों से जहां क्रिप्स का भारत में अपयश फैला , वहां लोगो में निराशा भी फैली ।
(4) जापानियों को नाराज करने की भावना :-
कांग्रेस जापानियों को नाराज करने को तैयार नही थी। जापानी आक्रमण का भय भी दिन दूना रात चौगुना बढ़ता जा रहा था और कांग्रेस ने समझ लिया कि उसे अंग्रेजों का साथ देकर जापानियों को नाराज नही करना चाहिए ।
(4) जापानियों को नाराज करने की भावना :-
कांग्रेस जापानियों को नाराज करने को तैयार नही थी। जापानी आक्रमण का भय भी दिन दूना रात चौगुना बढ़ता जा रहा था और कांग्रेस ने समझ लिया कि उसे अंग्रेजों का साथ देकर जापानियों को नाराज नही करना चाहिए ।
(5) बर्मा के शरणार्थियों की करुण कहानी :-
बर्मा से जो भारतीय शरणार्थी भारत आ रहे थे , उन्होंने श्री अणे को जो वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य थे और बाहर रहने वाले भारतीयों की देखभाल करने वाले विभाग के मुखिया थे , अपने दुःख की जो करुण कहानी सुनाई वह बड़ी दुःखपूर्ण थी। पं. हृदयनाथ कुंजरू ने, जो अणे के साथ ही थे , एक वक्तव्य में कहा कि भारतीय शरणार्थियों से ऐसा अपमान जनक व्यवहार किया गया , जैसे किसी ने लहर पैदा कर दी और उनमें यह भावना उत्पन्न कर दी कि अंग्रेज भारतीय हितों का रक्षण करने में असमर्थ है और वे अप्रत्यक्ष रूप से भारतीयों का अपमान करने को तुले हुए है।
(6) पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का वातावरण :-
पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का राज्य था । अंग्रेजों ने वहां सैनिक उदेश्यों की पूर्ति के लिए बहुत सी भूमि पर अधिकार कर लिया था । इसके अतिरिक्त उन्होंने वहां देशी नावों को जो हजारों परिवारों की जीविका का साधन थी, नष्ट कर दिया । इससे लोगों के दुःखों में अपार वृद्धि हुई और अंग्रेजो के खिलाप घृणा की भावना तीव्र हो उठी ।
(7) सीमातीत अमूल्य वृद्धि :-
उस समय वस्तुओं के भाव बहुत अधिक बढ़ गए थे । लोगों का कागजी मुद्रा पर से विश्वास उठता चला जा रहा था । इस महंगाई के कारण माध्यम वर्ग में सरकार के खिलाप बहुत ही तीव्र अविश्वास की भावना थी और वह अंग्रेजों से लोहा लेने को सम्बद्ध थे ।
बर्मा से जो भारतीय शरणार्थी भारत आ रहे थे , उन्होंने श्री अणे को जो वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य थे और बाहर रहने वाले भारतीयों की देखभाल करने वाले विभाग के मुखिया थे , अपने दुःख की जो करुण कहानी सुनाई वह बड़ी दुःखपूर्ण थी। पं. हृदयनाथ कुंजरू ने, जो अणे के साथ ही थे , एक वक्तव्य में कहा कि भारतीय शरणार्थियों से ऐसा अपमान जनक व्यवहार किया गया , जैसे किसी ने लहर पैदा कर दी और उनमें यह भावना उत्पन्न कर दी कि अंग्रेज भारतीय हितों का रक्षण करने में असमर्थ है और वे अप्रत्यक्ष रूप से भारतीयों का अपमान करने को तुले हुए है।
(6) पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का वातावरण :-
पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का राज्य था । अंग्रेजों ने वहां सैनिक उदेश्यों की पूर्ति के लिए बहुत सी भूमि पर अधिकार कर लिया था । इसके अतिरिक्त उन्होंने वहां देशी नावों को जो हजारों परिवारों की जीविका का साधन थी, नष्ट कर दिया । इससे लोगों के दुःखों में अपार वृद्धि हुई और अंग्रेजो के खिलाप घृणा की भावना तीव्र हो उठी ।
(7) सीमातीत अमूल्य वृद्धि :-
उस समय वस्तुओं के भाव बहुत अधिक बढ़ गए थे । लोगों का कागजी मुद्रा पर से विश्वास उठता चला जा रहा था । इस महंगाई के कारण माध्यम वर्ग में सरकार के खिलाप बहुत ही तीव्र अविश्वास की भावना थी और वह अंग्रेजों से लोहा लेने को सम्बद्ध थे ।
(8) अंग्रेजों की सामर्थ्य पर शंका :-
महात्मा गांधी का विचार था कि अंग्रेज भारत की रक्षा करने में असमर्थ है । अंग्रेजो की सिंगापुर , मलाया और बर्मा की हार ने महात्मा गांधी के विश्वास को दृढ़ बना दिया । उनके विचार में अँग्रेजों के यहां से चले जाने और न चले जाने के बीच कोई दूसरा रास्ता नही था , लेकिन इसका आशय यह था कि प्रत्येक अंग्रेज अपना बोरिया बिस्तर बांध कर हट जाए । वे इस बात के लिए तैयार थे कि ब्रिटिश सेनाएँ स्वतंत्र भारत के साथ संधि करके यहां ठहरी रहे । उन्होंने इस बात पर बल दिया , वह यह थी कि अंग्रेज भारतीय जनता के हाथ में सत्ता हस्तानांतरित कर दें। चूँकि अंग्रेजों से यह आशा नही की जा सकती थी कि वे भारत छोड़कर चले जायेंगे , इसलिए कुछ न कुछ कार्यवाही करनी आवश्यक थी, अब और निष्क्रियता असहनीय थी। ब्रिटिश सरकार के प्रति सक्रिय प्रतिरोध आवश्यक था , यह निष्क्रियता की तुलना में अधिक श्रेयष्कर था ।
भारत छोड़ो प्रस्ताव :-
अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने बम्बई में 8 अगस्त को 14 जुलाई , 1942 को कांग्रेस कार्यकारिणी द्वारा पारित प्रस्ताव का अनुसमर्थन कर दिया । यही प्रस्ताव भारत छोड़ो प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है । इसकी मुख्य बातें निम्न थीं -
(1) भारत में ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत और भारत की स्वतंत्रता की तत्काल स्वीकृति।
(2) 'स्वतंत्रता' की लालिमा ही भारत में ब्रिटिश विरोधी भावना को सदभावना में परिवर्तित कर सकती है ।
(3) भारत की स्वतंत्रता सयुंक्त राष्ट्रों की सफलता तथा विश्व सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है ।
(4) भारत की स्वतंत्रता साम्प्रदायिक समस्या के हल के लिए भी आबश्यक है।
(5) स्वतंत्रता के पश्चात अस्थाई सरकार मित्र राष्ट्रों को सहयोग करेगी ।
(6) अस्थाई सरकार की स्थापना देश के सभी प्रमुख दलों और समूहों के सहयोग से होगी ।
(7) एक सविधान सभा का निर्माण होगा जो सबको स्वीकृत संविधान का निर्माण करेगी ।
(8) यदि ब्रिटिश शासन ने स्वतंत्रता की मांग को स्वीकार नही किया तो गांधी जी के नेतृत्व में विशाल पैमाने पर अहिंसक आंदोलन शुरू किए जाएंगे।
आंदोलन का विकास एवं दमन :-
गांधीजी ने आंदोलन करने से पूर्व कांग्रेस कार्यसमिति के सम्मुख 70 मिनट तक भाषण दिया। डॉ. पट्टाभिसीतारमैया के शब्दों में "वास्तव में गांधीजी उस दिन एक अवतार और पैगेम्बर कि प्रेरक शक्ति से प्रेरित होकर भाषण दे रहे थे।"
अपने इस दिव्य भाषण के अंत में गांधीजी ने भारतवासियों को 'करो या मरो' (Do or Die) का इतिहास प्रसिद्ध नारा दिया , जिसका तात्पर्य यह था कि भारतवासियों द्वारा स्वाधीनता प्राप्ति के लिए प्रत्येक सम्भव प्रयत्न किया जाना चाहिए किंतु उन्होंने यह नितान्त स्पष्ट कर दिया था कि वे यह नही चाहते थे कि उनके द्वारा की गई कार्यवाही हिंसात्मक हो । गांधी ने वायसराय से बात करने का प्रयास किया किंतु उन्हें अवसर ही नही दिया गया । अगस्त , 1942 की प्रातः गाँधीजी , उनकी पत्नी , कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्यों और बम्बई के 40 प्रमुख नागरिकों को हिरासत में लिया । गाँधीजी तथा सरोजिनी नायडू को पूना के आगा खाँ महल में बन्दी बनाया गया और कांग्रेस कार्यसमिति के अन्य सदस्यों को अहदम नगर दुर्ग में बन्दी बनाया गया। महात्मा गांधी और अन्य कांग्रेसी नेताओ की अचानक गिरफ्तारी ने जनता में क्रोध की ज्वाला पैदा कर दी, उनमे बिजली जैसी उत्तेजना उत्त्पन्न हो गयी ।
जो आंदोलन गाँधीजी के नेतृत्व में विधिवत शुरू किया जाना था वह स्वतः शुरू हो गया । नेतृत्वहीन जनता ने आन्दोलन को जन आंदोलन का रूप दे दिया । नेतृत्व युवा पीढ़ी ने संभाला । नेताओ की गिरफ्तारी के विरोध में जुलूस निकाल गए , उनकी स्वतंत्रता के लिए प्रदर्शन किए गए , सभाओ और हड़तालों का आयोजन किया गया । सरकार ने प्रदर्शनकारियों के साथ कठोर व्यवहार किया। सरकार के दमन चक्र के कारण शांति पूर्ण ढंग से विरोध व्यक्त करने के सभी साधन बंद हो गए । जनता ने बाध्य होकर हिंसात्मक कार्य करने प्रारंभ किये। रेलवे और पुलिस स्टेशन जल दिए गए । संचार साधन भंग कर दिए गए , सरकार का दमन चक्र भी अपनी वीरतापूर्ण प्रकृति में प्रकट हुआ । कांग्रेस समितियों को गैर कानूनी संस्थायें घोषित कर दिया गया, कांग्रेस कार्यालयों को हथियार उन पर ताले लगवा दिए गए और कांग्रेस कार्यक्रमों को निषेध कर दिया गया । सरकार ने देश में पुलिस राज्य की स्थापना की , अध्यादेश जारी किए गए , नग्न शक्ति प्रदर्शन किया गया । 1942 के आंदोलन में पुलिस और सेना ने 538 बार गोलियाँ चलायीं गयी जिसके फलस्वरूप 950 व्यक्ति मारे गए और 1360 घायल हुए । 60 , 229 व्यक्तियोँ को गिरफ्तार किया गया।
आन्दोलन की असफलता के कारण :- भारत छोड़ो आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अब तक किये गए आन्दोलनों में सबसे भीषण और भारतीय स्वतंत्रता के लिए किया गया, महानतम प्रयास था । किंतु यह आंदोलन भी अपने मूल उद्देश्य को प्राप्त करने में असफल रहा । यह ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत नही कर सका और न ही भिन्न भिन्न राजनीतिक दलों व वर्गों में एकता या सहयोग की भावना उत्पन्न कर सका । इस आंदोलन की असफलता के कारण इस प्रकार थे-
(1) आंदोलन के संगठन में कमियाँ :- भारत छोड़ो आन्दोलन जन आंदोलन था और इस प्रकार के जन आंदोलन को सफल बनाने के लिए व्यापक तैयारियां की जानी चाहिए थीं। आंदोलन के नेताओ द्वारा अपनी रणनीति निश्चित कर लेनी चाहिए थी और इसके पूर्व की शासन उनको गिरफ्तार करें , उन्हें अज्ञात स्थान में चला जाना चाहिए था वस्तुतः इस प्रकार की कोई तैयारी नही की गई थी ऐसी स्थिति में जब शासन द्वारा दमन कार्य की पहल की गई , तो आंदोलनकारी हतप्रभ रह गए रह गए और प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के कारण आंदोलन नेतृत्व विहीन हो गया ।
(2) सरकारी सेवाओं और उच्च वर्गों की वफादारी :- भारत छोड़ो आन्दोलन तत्काल ही अपने लक्ष्य प्राप्ति में इसलिए भी असफल रहा कि देशी रियासतों के नरेश, सेना ,पुलिस , उच्च सरकारी तथा कर्मचारी आंदोलन काल में सरकार के प्रति पूर्ण वफादार बने रहे और इससे शासन कार्य बेरोक टोक चलता रहा।
(3) आंदोलनकारियों की तुलना में शासन की कई गुना शक्ति :- वस्तुतः आंदोलन की तात्कालिक असफलता अवश्यम्भावी थी क्योंकि आंदोलनकारियों की तुलना में शासन की शक्ति कई गुना थी । आंदोलनकारियों की न तो कोई गुप्तचर व्यवस्था थी और न ही एक स्थान से दूसरे स्थान को संदेश भेजने के साधन थे । उनकी आर्थिक व्यवस्था थी ब्रिटिश शासन की तुलना में बहुत कम थी ।
आन्दोलन का महत्व :- यह आन्दोलन स्वाधीनता प्राप्ति की दिशा में एक महान कदम था । यधपि यह अपने मूल लक्ष्य भारत से ब्रिटिश शासन की समाप्ति को तत्कालीक रूप में प्राप्त नही कर सका , लेकिन इस आंदोलन ने भारत की जनता में ऐसी अभूतपूर्व जागृति उत्पन्न कर दी, जिसके कारण ब्रिटेन के लिए भारत पर और लंबे समय तक शासन कर सकना सम्भव नही रहा । ए. सी. बनर्जी के शब्दों में " इस विद्रोह के परिणामस्वरूप अधिराज्य की पुरानी मांग सर्वथा समाप्त हो गयी और उसका स्थान पूर्ण स्वतंत्रता की मांग ने ले लिया ।
इस संबंध में डॉ. ईश्वरी प्रसाद लिखतें है कि, "अगस्त क्रांति अत्याचार और दमन के विरुद्ध भारतीय जनता का विद्रोह था और इसकी तुलना में फ्रांस के इतिहास में बेस्टिले के पतन या सोवियत रूस की अक्टूबर क्रांति से की जा सकती है । यह क्रांति में उत्पन्न नवीन उत्साह तथा गरिमा की सूचक थी ।
यह सत्य है कि भारत छोड़ो आंदोलन अपने तात्कालिक उदेश्यों में असफल रहा । परंतु जो जन जागृति इस आंदोलन ने उत्पन्न की उससे भारतीय स्वतंत्रता निश्चित हो गयी । भारत स्वतंत्रता के द्वार पर आकर खड़ा हो गया । अंग्रेजों का भारत छोड़ना निश्चित हो गया । यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद को एक गहरा धक्का लगा।
इस आंदोलन से उत्पन्न चेतना के परिणामस्वरूप ही 1946ई. में जल सेना का विद्रोह हुआ, जिसने भारत में ब्रिटिश शासन पर एक और भयंकर चोट की ।
भारत छोड़ो आंदोलन इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि इसने विदेशों में भारत समर्थक जनमत बनाया । चीन और अमेरिका पर तो इस आंदोलन का बहुत ही अधिक प्रभाव पड़ा। चीन के प्रधानमंत्री च्यांग काई शेक ने 25 जुलाई , 1942 को अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट को लिखा , "अंग्रेजों के लिए सबसे श्रेष्ठ नीति यही है कि भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दे दे ।"
इस प्रकार यह निश्चित तथ्य है कि भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए पृष्टभूमि तैयार की ।
Comments
Post a Comment