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[1] इंटरनेट (Internet) :- 
   
इंटरनेट का पूरा नाम इंटरनेशनल नेटवर्क है जिसे वर्ष 1950 में विंट कर्फ़  ने शुरू किया जिन्हें इंटरनेट का पिता कहा जाता है । इंटरनेट "नेटवर्को का नेटवर्क" है, जिसमे लाखों निजी व सार्वजनिक , लोकल से ग्लोबल स्कोप वाले नेटवर्क होते है । 
    इंटरनेट, कम्युनिकेशन का एक महत्वपूर्ण व दक्ष माध्यम है, जिसने काफी लोकप्रियता अर्जित की है । इंटरनेट के माध्यम से लाखों व्यक्ति सूचनाओं , विचारों , ध्वनि, वीडियो क्लिप्स इत्यादि को कम्प्यूटरों के जरिये पूरी दुनिया मे एक दूसरे के साथ शेयर कर सकते है। यह विभिन्न आकारों व प्रकारों के नेटवर्को से मिलकर बना होता है। 
     इंटरनेट पर उपलब्ध डाटा , प्रोटोकॉल द्वारा नियंत्रित किया जाता है ।  TCP/IP  द्वारा एक फ़ाइल को कई छोटे भागों में फ़ाइल सर्वर द्वारा बाँटा जाता है, जिन्हें पैकेट्स कहा जाता है । इंटरनेट पर सभी कम्प्यूटर आपस मे इसी प्रोटोकॉल का प्रयोग करके वार्तालाप (Conversation) करते है । 

[1.1] इंटरनेट का विकास (Development of Internet):- 
         इंटरनेट का वर्तमान विकसित रूप वर्ष 1960 से अब तक लगातार नेटवर्किंग के विकास का परिणाम है । पचास एवं साठ के दशक में कम्प्यूटरों को आपस मे जोड़ने के उद्देश्य से अमेरिका के रक्षा विभाग ने DARPA (Defense Advanced Research Projects Agency) प्रोजेक्ट की स्थापना की जिसका मुख्य लक्ष्य तकनीकी श्रेष्ठता को हासिल करना था DARPA को प्रारम्भ में ARPA के संक्षिप्त नाम से जाना गया । अक्टूबर  , 1962 में DARPA औपचारिक रूप से कम्प्यूटर नेटवर्किंग की रिसर्च में जुट गई। 
    इस नेटवर्क प्रोजेक्ट के अंतर्गत ARPANET (H Research Projects Agency Network) का पहला लिंक 21 नवम्बर , 1969 को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय एवं स्टैण्डर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट के मध्य स्थापित हुआ । 
     5 दिसम्बर , 1969 तक इस नेटवर्क के चार नोड स्थापित हो गए । वर्ष 1972 में इस प्रोजेक्ट का आधिकारिक नाम ALOTTANET से बदलकर ARPANET ही कर दिया गया । ARPANET का सम्पूर्ण विकास RFC (Request For Comment Process) के ऊपर केंद्रित था , जिसका प्रयोग आज भी इंटरनेट प्रोटोकॉल में हो रहा है।  इसमें प्रयोग होने वाला होस्ट सॉफ्टवेयर RFCI है जिसे कैलिफोर्निया विश्विद्यालय के स्टीव फ्रोकर के द्वारा अप्रैल , 1969 में लिखा गया । ARPANET का अमेरिका से बाहर पहला नेटवर्क सयोजन NORSAR था जो अमेरिका एवं नॉर्वे के बीच वर्ष 1973 में स्थापित हुआ था । वर्ष 1984 से लेकर 1988 तक CERN ने TCP/IP को अपने सभी मुख्य कम्प्यूटरों और वर्कस्टेशनों में इनस्टॉल के लिया था । एशिया में इंटरनेट का चलन वर्ष 1980 के बाद हुआ । 


[1.2] इंटरनेट के लाभ (Advantages of Internet):-
         
इंटरनेट के लाभ निम्नवत है - 
● यह दूसरे व्यक्तियों से आसानी से सम्पर्क बनाने की अनुमति देता है। 
● इसके माध्यम से दुनिया मे कहीं भी, किसी से भी सम्पर्क बनाया जा सकता है। 
● इंटरनेट पर डॉक्युमेन्ट को प्रकाशित करने पर पेपर इत्यादि की बचत होती है ।
● यह कम्पनियों के लिए कीमती संसाधन है । जिस पर वे व्यापार का विज्ञापन तथा लेन देन भी कर सकते है। 
● एक ही जानकारी को कई बार एक्सेस करने के बाद उसे पुनः सर्च करने में कम समय लगता है। 


[1.3] इंटरनेट की हानियाँ (Disadvantages of Internet):- 
         
इंटरनेट की हानियाँ निम्न प्रकार से है - 
● कम्प्यूटर में वायरस के लिए यह सर्वाधिक उत्तरदायी है । 
● इंटरनेट पर भेजे गए संदेशो को आसानी से चुराया जा सकता है। बहुत सी जानकारी जाँची नही जाती । जो गलत या असंगत भी हो सकती है। 
● अनैच्छिक तथा अनुचित डॉक्युमेन्ट/ तत्व कभी कभी गलत लोगों (आतंकवादी) द्वारा इस्तेमाल कर लिए जाते है। 
● साइबर धोखेबाज क्रेडिट/डेबिट कार्ड की समस्त जानकारी को चुराकर उसे गलत तरीके से इस्तेमाल कर सकते है। 


[1.4] इंटरनेट सेवाएँ (Internet Services):- 

इंटरनेट से उपयोगकर्ता कई प्रकार की सेवाओं का लाभ उठा सकते है , जैसे इलेक्ट्रॉनिक मेल , मल्टीमीडिया डिस्प्ले , शॉपिंग , रियल टाइम ब्रॉडकास्टिंग इत्यादि । इनमे से कुछ महत्वपूर्ण सेवाएँ इस प्रकार है- 

चैटिंग  यह वृहत स्तर पर भी उपयोग होने वाली टेक्स्ट आधारित संचारण है, जिससे 
इंटरनेट पर आपस मे बातचीत कर सकते है । इसके माध्यम से उपयोगकर्ता चित्र , वीडियो, ऑडियो इत्यादि भी एक दूसरे के साथ शेयर कर सकते है। 
जैसे - Skype , yahoo , messenger इत्यादि । 


वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोई भी व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह किसी अन्य व्यक्ति या समूह के साथ दूर होते हुए भी आमने सामने रहकर वार्तालाप कर सकते है । इस कॉम्युनिकेशन मे उच्च गति इंटरनेट कनेक्शन की आवश्यकता होती है व इसके साथ एक कैमरे, एक माइक्रोफोन , एक वीडियो स्क्रीन तथा साउंड सिस्टम की भी जरूरत होती है । 
ई-लर्निंग
इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर आधारित प्रशिक्षण, इंटरनेट आधारित प्रशिक्षण , ऑनलाइन शिक्षा इत्यादि सम्मिलित हैं, जिसमे उपयोगकर्ता को किसी विषय पर आधारित जानकारी को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रदान किया जाता है। इस जानकारी को वह किसी भी आउटपुट माध्यम पर देखकर स्वयं को प्रशिक्षित कर सकता है। यह कम्प्यूटर या इंटरनेट से ज्ञान को प्राप्त करने का एक माध्यम है। 
ई-बैंकिंग इसके माध्यम से उपयोगकर्ता विश्वभर में कहीं से भी अपने बैंक अकॉउन्ट को मैनेज कर सकता है । यह एक स्वचालित प्रणाली का अच्छा उदाहरण है, जिसमें उपयोगकर्ता की गतिविधियों (पूँजी निकालने, ट्रान्सफर करने , मोबाइल रिचार्ज करने इत्यादि) के साथ उसका बैंक एकाउंट भी मैनेज होता रहता है। ई-बैंकिंग से किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस (पीसी , मोबाइल आदि) पर इंटरनेट की सहायता से की जा सकती है। 
ई-शॉपिंग इसे ऑनलाइन शॉपिंग भी कहते है । जिसके माध्यम से उपयोगकर्ता कोई भी समान ;जैसे - किताबे , कपड़े , घरेलू सामान , खिलौने , हार्डवेयर , सॉफ्टवेयर तथा हेल्थ इंश्योरेंस इत्यादि को खरीद सकता है। इसमें खरीदे गए समान की कीमत चुकाने के लिए कैश ऑन डिलीवरी व ई-बैंकिंग (कम्प्यूटर पर ही वेबसाइट से भुगतान) का प्रयोग करते है । यह भी विश्वभर में कहीं से भी की जा सकती है । 
ई-रिजर्वेशन यह किसी भी वेबसाइट पर किसी भी वस्तु या सेवा के लिए स्वयं को या किसी अन्य व्यक्ति को आरक्षित करने के लिए प्रयुक्त होती है ; जैसे - रेलवे रिजर्वेशन मे , एयरवेज ,टिकट बुकिंग में , होटल रूम्स की बुकिंग इत्यादि में । इसकी सहायता से उपयोगकर्ता को टिकट काउन्टर पर खड़े रहकर प्रतीक्षा नही करनी होती । इसे इंटरनेट के माध्यम से किसी भी जगह से कर सकते है। 




[1.5]  वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web)- वर्ल्ड वाइड वेब इंटरनेट का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है, जिस पर सभी विषयों से सम्बंधित सूचनाएँ उपलब्ध होती है । वेब या वर्ल्ड वाइड वेब इंटरनेट पर उपलब्ध इंटरकनेक्टेड डाक्यूमेंट्स या पेजिज और अन्य रिसोर्सिज का एक समूह है। पेजिज या डाक्यूमेंट्स को हाइपरलिंक्स द्वारा इंटरकनेक्टेड किया जाता है । इंटरकनेक्टेड पेजिज को वेब पेजिज (Web Pages) कहा जाता है और इन्हीं वेब पेजिज के समूह को वेबसाइट (Website) कहा जाता है।
  एक वेब पेज को वर्ल्ड वाइड वेब पर देखने के लिए वेब वेब ब्राउज़र (Web Browser) सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है। वेब ब्राउज़र एक प्रकार का क्लाइन्ट सॉफ्टवेयर है । वेब ब्राउज़र पर पेज का एड्रेस या URL , (Uniform Resource Locator) टाइप करके पेज या वेबसाइट को देखा जा सकता है । वेब पेज से सम्पर्क करने के लिए HTTP (Hyper Text Transfer Protocol) का उपयोग किया जाता है। HTTP एक प्रकार का प्रोटोकॉल है, जिसमें इंटरनेट पर सेवा प्रदान करने वाला कम्प्यूटर वेब सर्वर (Web Server) तथा उसका उपयोग करने वाला वेब क्लाइंट (Web Client) कहलाता है । प्रत्येक वेब पेज HTML (HyperText Markup Language) में लिखा जाता है।


[1.6]  यूनिफार्म रिसोर्स लोकेटर (Uniform Resource Locator, URL):-
इंटरनेट पर किसी सर्वर या सेवा के नाम को व्यक्त करने वाला पता URL कहलाता है। यह एक निश्चित मापक है ,जो किसी सूचना 
इंटरनेट पर व्यक्त करता है । URL के चार भाग होते है- 
(i) प्रोटोकॉल (Protocol):-  किसी कम्प्यूटर नेटवर्क के किन्ही दो नोड के मध्य डेटा संचरण करने की प्रक्रिया के सम्पन्न होने के नियम एवं विधियों के समूह को प्रोटोकॉल कहते है। 
(ii) सर्वर नेम (Server Name):- यह वेब ब्राउज़र द्वारा एक्सेस किया जाने वाला सर्वर नेम बताता है,इस भाग में बताए गए सर्वर में ही वांछित पेज स्टोर होते है। 
(iii) फ़ाइल नेम (File Name):- यह URL का तीसरा भाग है । इसमें दूसरे भाग में बताए गए सर्वर नेम में स्टोर फ़ाइल का नाम बताया जाता है , जिसे एक्सेस कर क्लाइंट मशीन तक लाना होता है । 
(iv)  फ़ाइल पाथ (File Path):-  इस भाग में फ़ाइल के नाम से पहले उन डायरेक्टरी का नाम दिया होता है, जिसके अन्दर फ़ाइल स्टोर होती है । 


[1.7]  वेब ब्राउज़िंग सॉफ्टवेयर (Web Browsing Software):- वेब ब्राउज़िंग सॉफ्टवेयर को ब्राऊजर्स या वेब क्लाइंट्स (Web Clients) भी कहा जाता है जो माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन एवं कई अन्य कंपनियों द्वारा मुफ्त में प्रदान किया जाता है। इन वेब ब्राऊज़िंग सॉफ्टवेयर का प्रयोग वर्ल्ड वाइड वेब में नेविगेट करने एवं वेब पेजिज (Web Pages) को देखने हेतु किया जाता है। अधिकांश ब्राऊजर्स फ्रीवेयर (Freeware) होते है । प्रथम ग्राफिकल वेब ब्राऊज़र मोजाइक (Mosaic) था , जिसे मार्क एंड्रिससेंन (Marc Andreessen) ने बनाया था । 

वेब ब्राउज़र की निम्नलिखित विशेषताएँ होती है - 
(i) वेब ब्राउज़र की जब यूआरएल (URL) एड्रेस दिया जाता है , तो वह उससे सम्बन्धित सूचनाओं को एक्सेस करने में सक्षम होता है। 

(ii) वेब ब्राऊज़र HTTP (HyperText Transfer Protocol) का प्रयोग करके वेब सर्वर (Web Server) के साथ संचार कायम करने में सक्षम होता है। 

(iii) डाक्यूमेंट्स को रिट्रीव करना एवं उन्हें सिस्टम के अनुकूल फॉर्मेट करना , एक वेब ब्राउज़र की कार्य प्रणाली के मुख्य स्तम्भ मने जाते है। 


लोकप्रिय वेब ब्राऊजर्स :- कुछ लोकप्रिय वेब ब्राऊजर्स निम्नलिखित है - 
(i)  मोज़िला फायरफॉक्स (Mozilla Firefox) :-
यह एक निःशुल्क, ओपन सोर्स वेब ब्राऊज़र है, जिसे विण्डोज़ XP ऑपरेटिंग सिस्टम तथा लाइनेक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ साथ मोबाइल डिवाइसों पर इंटरनेट उपयोग करने के लिए बनाया जाता है। इसमें एडडॉन्स (Addons) , एक्सटेंशन (Extenesions) , थीम्स (Themes) , टैब्स (Tabs) , किसी शब्द को ढूँढने के लिए सर्चिंग (Searching) व Spell Check जैसी अच्छी सुविधाएं उपलब्ध है । 
(ii)  गूगल क्रोम (Google Chrome) :-  यह एक फ्रीवेयर वेब ब्राउज़र है , जिसे Google कम्पनी द्वारा बनाया गया है । इस वेब ब्राउज़र में बुकमार्क्स (Bookmarks) तथा सेटिंग्स सिंक्रोनाइजेशन , वेब स्टैण्डर्ड सपोर्ट , सिक्योरिटी , मालवेयर  ब्लॉकिंग , तेज गति से इंटरनेट एक्सेस , आकर्षक यूजर इंटरफ़ेस , डेस्कटॉप शॉर्टकट्स व ऍप्स (Apps), ऑटोमैटिक वेब पेज ट्रांसलेशन व कलर मैनेजमेंट के साथ साथ अन्य सभी परम्परागत विशेषताएँ भी उपलब्ध है। 
(iii)  इंटरनेट एक्सप्लोरर (Internet Explorer) :-
इंटरनेट एक्सप्लोरर एक लोकप्रिय वेब ब्राउज़र है, जिसका निर्माण माइक्रोसॉफ्ट कंपनी द्वारा किया गया है।इंटरनेट एक्सप्लोरर , विण्डोज़ और मैक्निटोश (Macintosh) ऑपरेटिंग सिस्टम के सभी संस्करणों (Versions) में उपयोगी होता है।
(iv) नेटस्केप नेविगेटर (Netscape Navigator):- नेटस्कोप नेविगेटर वेब ब्राउज़र का निर्माण नेटस्केप कॉम्युनिकेशन द्वारा किया गया है।  नेटस्केप नेविगेटर , विंडोज , मैक्निटोश और यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के सभी संस्करणों के लिए उपलब्ध है। 
(v) लिंक्स (Lynx):-  लिंक्स एक टेक्स्ट आधारित वेब ब्राउज़र है, इसका निर्माण यूनिवर्सिटी ऑफ कन्सास द्वारा किया गया था । यह मुख्यतः टेक्स्ट आधारित इंटरनेट कनेक्शन , जैसे डायल अप टेक्स्ट ओनली Unix एकाउंट आदि के लिए उपयुक्त है । इस वेब ब्राउज़र के द्वारा आप डाक्यूमेंट्स को कलर रूप में या ग्राफ़िक्स को ऑनलाइन नही देख सकते ।  


वेब ब्राउज़र को एक्सेस करना :-  वेब ब्राउज़र एक सॉफ्टवेयर / प्रोग्राम है जिसका प्रयोग वेब पेजिज को देखने के लिए किया जाता है । वेब ब्राउज़र पर वेब पेज देखने या वेब को एक्सेस करने के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण किया जाता है - 

(i) Start - All Programs - Internet Explorer  या अन्य वेब ब्राउज़र को सिलेक्ट करे । 
(ii) इसमें प्रस्तुत प्रारम्भिक वेब पेज को होमपेज कहा जाता है । इस पेज में यूजर किसी भी कंटैक्ट के बारे में सर्च कर सकता है तथा वेब ब्राउज़र के एड्रेस बार में वेब पेज के 
इंटरनेट एड्रेस या यूआरएल (URL) को टाइप करके फिर एन्टर दबाकर उस वेब पेज को एक्सेस कर सकता है। 


[1.8]  सर्च इंजन (Search Engines):- सर्च इंजन्स एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिसके द्वारा 
इंटरनेट से इच्छानुसार सूचनाओं को खोज जा सकता है । सबसे पहले सर्च इंजन का निर्माण कार्य MeGill University ने वर्ष 1990 में आरम्भ हुआ था , जिसे WAIS (Wide Area Information Server) तथा Gopher ने मिलकर आगे बढ़ाया। इन्होंने इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं को क्रमबद्ध करने का कार्य किया । गोफर (Gopher) आविष्कार अमेरिका के मिनिसोटा नामक विश्वविद्यालय में हुआ था । यह एक यूजर फ्रेंडली इंटरफ़ेस है, जिसके माध्यम से यूजर इंटरनेट पर प्रोग्राम्स तथा सूचनाओं का आदान - प्रदान कर सकता है । गोफर यूजर की वांछित सूचनाओं तथा प्रोग्राम्स को खोजकर यूजर के सामने प्रस्तुत कर देता है । 


लोकप्रिय सर्च इंजन:-  कुछ लोकप्रिय सर्च इंजनों का विवरण निम्न प्रकार है -

(i) गूगल (Google)
 यह एक लोकप्रिय सर्च इंजन है , जिसमें कई सारे अद्वितीय फीचर्स उपलब्ध होते है । इसमें एक ऐसा फीचर होता है जो सबसे सम्भावित मैच को ढूंढने और उसे लोड करने के लिए ऑटोमैटिक सुविधा प्रदान करता है । यही कारण है कि गूगल एक सर्च में बेस्ट मैचिंग वेबसाइट ढूंढने में कुशल है। इस सुविधा का प्रयोग करने के लिए सर्च बॉक्स में कम्पनी का नाम टाइप कर 'I am Feeling Lucky' बटन पर क्लिक करें । 

(ii) याहू (Yahoo) यह बेसिक रूप से एक सर्च डायरेक्टरी है । यह वेब की डायरेक्टरी या सब्जेक्ट कैटेलॉग के साथ हैरार्किकली ऑर्गनाइज्ड (Hierarchical Organised) होती है , जो ब्राउज और सर्च की जा सकती है । Yahoo! बहुत सी अतिरिक्त सेवाएं ;जैसे - ई-मेल एकाउंट्स , रीजन स्पेसिफिक साइट्स लोगों को खोजने के लिए सर्चेज , साइट रिव्युज (Site Reviews) एवं एक कस्टमाइजेबल (Customizable) न्यूज़ पेज (News Page) प्रदान करता है ।

(iii) अल्ताविस्ता (Altavista):- अल्ताविस्ता का निर्माण USA की डिजिटल इक्विपमेंट कॉर्पोरेशन (DEC) की रिसर्च सुविधा के द्वारा किया गया था । इस सर्च इंजन में इन्डेक्सिंग , एक डॉक्यूमेंट के फूल टेक्स्ट पर आधारित होती है, जिसके अन्तर्गत पहली कुछ लाइन्स एक एब्सट्रेक्ट (Abstract) के रूप में प्रयोग की जाती है। इस सर्च इंजन में सर्च टाइप्स के दो मोड्स होते है, जो निम्नलिखित होते है - 
1.  सिम्पल सर्च  (Simple Search)
2.  एडवान्स्ड सर्च (Advanced Search)

(iv) लाइकोस (Lycos):- इस सर्च इंजन के डाटाबेस (Database) में लगभग 66 मिलियन पृष्ठ होते है , जिसमें नेविगेशन (Navigation) का कार्य एक वेब रोबोट द्वारा होता है जो Heuristics विधि का प्रयोग कर नेविगेशन करता है एवं सर्च करने योग्य इन्डेक्स बनाता है। 
      वेब रोबोट प्रत्येक डॉक्यूमेंट को इन्डेक्सिंग कर उसके आउटगोइंग लिंक्स को एक कतार में रखता है और इसमें से एक URL का चयन करत है। लाइकोस , टाइल्स , हैडिंग्स और HTML की सब-हैडिंग्स , FTP एवं Gopher डॉक्युमेंट्स को इन्डेक्स करता है । इस सर्च इंजन में इमेज एवं साउंड्स को सर्च करने की क्षमता होती है । वह न्यूज़ (News), साइट रिव्यु (Site Review) जैसी बहुत सी सामग्रियाँ प्रदान करता है ।

(v) हॉटबॉट (Hot Bot):-   इस सर्च इंजन का प्रयोग वेब डाक्यूमेंट्स को रिट्रीव एवं उन्हें इंडेक्स करने के उद्देश्य से किया जाता है, जिसके लिए यह सर्च इंजन एक रोबोट एवम वर्क स्टेशन्स के एक पैरेलल नेटवर्क्स का प्रयोग करता है । 
    यह सर्च इंजन विशेष प्रकार के शब्दों या वाक्यांशों (Phrases) को सर्च करने के लिए अधिक उपयुक्त है । इस सर्च में उपयोगकर्ताओं के लिए एक टेक्स्ट बॉक्स होता है, जिसमे वे अपनी क्वेरी स्ट्रिंग्स (Query Strings) प्रविष्ट करते है एवम साथ ही एक लिस्ट बॉक्स (List Box) भी होता है, जिसमें से किसी सही शब्द या वाक्यांश को चुना जा सकता है। अपने सर्च को फाइन ट्यून करने के लिए भी HotBot का प्रयोग कर सकते है।  
(vi) वेबक्रोलर (Web Crawler):-  इस सर्च इंजन में एक वेब रोबोट की सहायता से पूरे वेब के डाक्यूमेंट्स में से की-वर्ड्स को लेकर एक डेली इंडेक्स का निर्माण किया जाता है । वेब क्रोलर को वेब स्पाइडर (Web Spider) या वेब रोबोट (Web Robot) भी कहा जाता है। यह रोबोट HTML , डाक्यूमेंट्स के शीर्षक और टेक्स्ट को इंडेक्स करके नए डाक्यूमेंट्स को प्राप्त करने का प्रयास करता है। 

[1.9] वेब पेज (Web Page):-  वेब बहुत सारे कम्प्यूटर डाक्यूमेंट्स या वेब पेजों का संग्रह है । ये डाक्यूमेंट्स HTML में लिखे जाते है तथा वेब ब्राउज़र द्वारा प्रदर्शित किए जाते है । ये दो प्रकार के होते है - 
  (i) स्टैटिक (Static) वेब पेज  इस प्रकार के वेब पेज हर बार एक्सेस करने पर एक समान सामग्री दिखाते है। 
  (ii)  डायनमिक (Dynamic) वेब पेज इस प्रकार के वेब पेज हर बार एक्सेस करने पर बदलती है । 



[1.10] वेबसाइट (Website):- एक वेबसाइट वेब पेजों का संग्रह होती है, जिसमें सभी वेब पेज हाइपरलिंक द्वारा एक-दूसरे से जुड़े होते है। किसी भी वेबसाइट का पहला पेज कहलाता है । उदाहरण - Http://iete.org इत्यादि। 

वेब पेजेस को डाउनलोड करना :-  वेब पेज सूचनाओं का एक ऐसा स्रोत है, जिसे WWW पर प्रयोग किया जाता है और इसे वेब ब्राउज़र के द्वारा एक्सेस किया जा सकता है । अतः किसी वेब पेज को अपने कम्प्यूटर में सेव (Save) अर्थात डाउनलोड (Download) करने के लिए निम्नलिखित पदों का अनुसरण किया जाता है- 
(i) File मेन्यू - Save As को चुने जिसके फलस्वरूप Save Web Page डाइलॉग बॉक्स निम्न चित्र की भाँति प्रदर्शित होगा - 

(ii) File name बॉक्स में फ़ाइल का नाम टाइप करें । 
(iii) Save as type बॉक्स के सामने स्थित ड्राप डाउन ऐरो पर क्लिक करके , सिलेक्टेड फ़ाइल टाइप को सिलेक्ट करें- 
               (a) यदि वर्तमान में सेव किये जा रहे पेज से सम्बंधित सभी फाइलों को सेव करना हो तो Web Page , Complete विकल्प को सिलेक्ट करें । 
               (b)  यदि पेज का केवल HTML कॉड ही सेव करना है तोWeb Page , HTML Only विकल्प को सिलेक्ट करें । 
               (c)   यदि वेब पेज के केवल टेक्स्ट को सेव करना है, तो टेक्स्ट Only विकल्प को चुने । इससे वेब पेज की सूचना Text फॉर्मेट में सेव हो जाएगी । 
(iv)  अंत मे Save बटन पर क्लिक कर इसे सुरक्षित करें ।


वेब पेज प्रिण्ट करना :-  किसी वेब पेज को प्रिंट करने के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण किया जाता है- 
      (i)  वेब ब्राऊज़र से उस पेज को एक्सेल करें जिसे आप प्रिंट करना चाहते है या हार्ड कॉपी के रूप में रखना चाहते है।
      (ii)  File मेन्यू पर क्लिक करके, Print ऑप्शन को सिलेक्ट करें । या  टूलबार पर स्थित Print बटन पर क्लिक करें । या  Ctrl + P शॉर्टकट की का प्रयोग करें । 
      (iii)  Print डाइलॉग बॉक्स से प्रिन्टर, पेजेस , कॉपीज की संख्या आदि प्रॉपर्टीज का चयन करें । 
      (iv)  Print button पर क्लिक करें। 



[1.11]  सोशल नेटवर्किंग (Social Networking):-   यह इंटरनेट के माध्यम से बना हुआ सोशल नेटवर्क (कुछ विशेष व्यक्ति या अन्य असम्बन्धित व्यक्तियों का समूह) होता है । इसके माध्यम से उस सोशल नेटवर्क के अंतर्गत आने वाला कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से सम्पर्क रख सकता है चाहे वे दोनों कहि भी हो । सोशल नेटवर्किंग सोशल साइट्स पर की जा सकती है तथा कॉम्युनिकेशन टेक्स्ट, पिक्चर्स , वीडियो इत्यादि के रूप में भी स्थापित हो सकता है । 

लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग :-  कुछ प्रमुख सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटें निम्नलिखित है - 
  (i) फेसबुक (Facebook)   यह दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट है, जो फरवरी , 2004 में लांच की गई , वर्तमान में इसके एक अरब से अधिक सक्रिय यूजर है । फेसबुक की स्थापना मार्क जुकरबर्ग एवं उनके मित्रों ने की थी । इसमें यूजर अपना प्रोफाइल बनाकर मित्रों को जोड़ सकता है , सन्देशों का आदान प्रदान कर सकता है, समान रुचि के ग्रुप बना सकता है। इसका एक महत्वपूर्ण फीचर यह है कि इसमें ऑटोमैटिक नोटिफिकेशन आते रहते है, जो इस साइट के उपयोग को रोचक बनाते है ।

(ii) ट्विटर (Twitter):- इस सोशल नेटवर्किंग साइट पर उपयोगकर्ता केवल 140 शब्दों में अपने सन्देश को सम्प्रेषित कर सकते है, जिसे ट्वीट्स (Tweets) कहते है । वर्तमान समय में , इस सोशल नेटवर्किंग साइट्स के उपयोगकर्ताओं की संख्या पूरे विश्व में लगभग 600 मिलियन है। 
(iii) लिंक्ड इन (LinkedIn):- यह पेशेवर व्यवसाय के लोगों के लिए एक सामाजिक नेटवर्किंग वेबसाइट है । 
(iv) गूगल प्लस (Google +) :-  गूगल प्लस एक सोशल नेटवर्किंग साइट है, जो गूगल द्वारा संचालित की जाती है । 
(v)  टम्बलर (Tumbler):-  डेविस कार्प ने वर्ष 2007 में टम्बलर की स्थापना की थी । यह ब्लॉगिंग साइट सोशल नेटवर्किंग की सुविधा भी देती है। 
(vi) माइस्पेस (My Space) यह एक विशिष्ट प्रकार की सामाजिक नेटवर्किंग सेवा है, जो पॉप संगीतकार और नाटककार जस्टिन टिम्बर लेक के अधीन है । 


[2]  इलेक्ट्रॉनिक मेल (Electronic Mail) :-  ई-मेल का पूर्ण रूप "इलेक्ट्रॉनिक मेल" है ।  ई-मेल के माध्यम से कोई व्यक्ति विशेष या यूजरों का समूह दुनियाभर में किसी से भी सन्देशों का आदान प्रदान कर सकता है । ई-मेल, सन्देशों के आदान प्रदान हेतु एक सस्ता , तेज एवं विश्वसनीय टूल है। 
         ई-मेल संदेश के दो घटक होते है --- ई - मेल एड्रेस और मैसेज किसी भी ई-मेल प्रदाता की वेबसाइट जैसे - Gmail, hotmail, yahoo mail पर साइन अप (Sign up) करके नए ई-मेल एड्रेस को यूजर द्वारा बनाया जा सकता है। जिसका प्रयोग करके ई-मेल को क्रिएट , सेंड ,रिसीव , फॉरवर्ड , स्टोर, प्रिन्ट और डिलीट किया जा सकता है। ई-मेल का प्रयोग करके साधारण टेक्स्ट, डॉक्यूमेंट,ग्राफिक्स ,ऑडियो , वीडियो और चित्र आदि भेजे जा सकते है। 


[2.1]  ई-मेल के लाभ (Advantage of E-Mail):-  ई-मेल सेवा के कई लाभ है, जो निम्नलिखित है
●  ई-मेल के माध्यम से सन्देशों के साथ साथ उनकी दिनांक व समय को भी सुरक्षित करके रख सकते है। 
●  ई-मेल एड्रेस इंटरनेट पर व्यक्ति की पहचान व वेबसाइटों पर पंजीकरण (Registration) करने में अत्यन्त लाभप्रद है।
●  ई-मेल द्वारा सन्देशों को व्यवहारिक पत्राचार की तुलना में काफी तेज गति से सम्प्रेषित किया जाता है। 
●  ई-मेल द्वारा पत्रों/सन्देशों के खोने की आशंका नगण्य होती है ।
●  ई-मेल को केवल वही यूजर पढ़, डाउनलोड व जवाब (Reply) दे सकता है जिसे वह भेजा गया है । 
●   पारम्परिक डाक सेवा के बदले ई-मेल का प्रयोग करने से कागज की भी बचत होती है व ई-मेल को कागजी दस्तावेजों की तुलना में सम्भावना बेहद आसान होता है। 
●  ई-मेल का प्रयोग वर्तमान में विज्ञापनों , बिजनेस प्रोमोशन इत्यादि में भी किया जाता है ।


[2.2] ई-मेल की हानियाँ (Disadvantage of E-Mail):- ई-मेल के लाभ होने के साथ साथ उसकी कुछ हानियाँ भी है जोकि निम्नलिखित है- 
●  ई-मेल के पासवर्ड के लीक होने पर कोई भी अज्ञात व्यक्ति उसका प्रयोग कर सकता है। 
●  प्राप्त किये गए ई-मेल में वायरस हो सकते है, जो हानिकारक छोटे प्रोग्राम्स होते है। वायरस प्रोग्राम ई-मेल से सम्बंधित सभी जानकारियों को चुराकर , अनुचित ई-मेल को अन्य ई-मेल एड्रेसो पर भेज सकता है। 
●   कई यूजर्स अन्य ई-मेल यूजरों को अवांछित ई-मेल भेजते है जिन्हें स्पैम (Spam) कहा जाता है। 
●   यूजर्स को Mailbox की समय समय पर मैनेज करने पड़ता है अन्यथा Mailbox फूल हो जाएगा व आगामी ई-मेल को प्राप्त नही किया जा सकेगा । 
●   ई-मेल का प्रयोग सरकारी व्यापार में नही किया जा सकता , क्योंकि यदि ई-मेल क्रिडेशीयल किसी अवैध यूजर को पता चल जाये तो वह उनका गलत प्रयोग कर सकता है । 


[2.3] ई-मेल एड्रेसिंग (E-Mail Addressing):-
ई-मेल भेजने और प्राप्त करने के लिए यूजर के पास ई-मेल एड्रेस का होना अत्यन्त आवश्यक है। ई-मेल एड्रेस किसी ई-मेल सर्वर पर ऐसा स्थान होता है जहाँ ई-मेल स्टोर की जाती है। इस स्थान को मेलबॉक्स भी कहा जाता है। जब यूजर किसी इंटरनेट सेवा प्रदाता (Internet Service Provider) कम्पनी से इंटरनेट कनेक्शन खरीदता है, तो वह सामान्यतया यूजर के लिए एक मेलबॉक्स भी बना देता है और उस मेलबॉक्स का एड्रेस यूजर के लिए एक मेलबॉक्स भी बना देता है और उस मेलबॉक्स का एड्रेस यूजर को दे देता है जिसे ई-मेल एड्रेस कहा जाता है । ई-मेल एड्रेस सामान्यतया निम्न प्रकार का होता है- username@hostname 
यहाँ 'username' मेलबॉक्स का नाम है। यह सामान्यतया यूजर के यूजरनेम के समान होता है, जिसके द्वारा यूजर अपने कम्प्यूटर को इंटरनेट से जोड़ते है । 'hostname' मेल सर्वर का नाम होता है । यूजर उस वेब पोर्टल के होम पेज पर जाकर और अपने यूज़रनेम व पासवर्ड द्वारा साइनइन (Sign in) करके अपने mailbox को कभी भी खोल सकता है। 



[2.4] ई-मेल क्लाइंट को आउटलुक पर कॉन्फ़िगर करना (To Configure E-Mail Client on Outlook) ई-मेल एकाउंट को आउटलुक पर कन्फिगर करने के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण किया जाता है - 
●   Outlook 2007 को खोलें।
●   Tools टैब पर क्लिक करें ।
●   Account Setting ऑप्शन पर क्लिक करें । 
●   New पर क्लिक करें । 
●   अपने एकाउंट का विवरण जैसे - नाम , ई-मेल एड्रेस तथा पासवर्ड आदि प्रविष्ट करें ।
●   Next बटन पर क्लिक करें तथा एकाउंट की पुष्टि होने का इंतजार करें । 
●   एकाउंट के सफलतापूर्वक बनने के बाद , Finish बटन पर क्लिक करें ।



[2.5] ई-मेल का अनुप्रयोग (Applications of E-Mail)(i) ई-मेल एकाउंट खोलना (Opening E-Mail Account) ई-मेल एकाउंट खोलने के लिए बहुत सी फ्री वेबसाइट/वेब पोर्टल उपलब्ध है । जिसमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है-
●  www.hotmail.com
●  www.yahoo.com
●  www.gmail.com
●  www.msn.com
●  www.rediffmail.com

   इनमे से किसी भी वेबसाइट के द्वारा यूजर अपना रजिस्ट्रेशन एक नए यूजर की तरह करवाकर अपना ई-मेल एकाउंट बना सकता है । 
यूजर निम्न चरणों से अपना वेब आधारित ई-मेल एकाउंट बना सकता है - 

1.  किसी वेब ब्राऊज़र के एड्रेस बार पर www.gmail.com की टाइप करके Enter कुंजी को दबाइए , जिससे इस वेबसाइट का Homepage स्क्रीन पर खुल जाएगा । जोकि निम्न प्रकार का होगा - 

2.  एकाउंट बनाने के लिए Create an account हाइपरलिंक पर क्लिक करें । इसे क्लिक करने से निम्न रजिस्ट्रेशन फॉर्म प्रस्तुत होगा- 


3.  फॉर्म पूरा भरकर Next Step बटन को दबाएँ । फॉर्म भरते समय सभी दिशा निर्देशों का पालन करें , ताकि यह सुनिश्चित हो जाये कि यूजर नेम अद्वितीय (Unique) है। यदि ऐसा नही है तो यूजर को पुनः रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरना होगा । 
4.  Create your public Google + profile पेज खुलेगा इसमें यदि आप प्रोफाइल बनाना चाहते है, तो Create your profile बटन पर क्लिक करें अन्यथा No thanks बटन पर क्लिक करें ।
5.  यदि आपने Create your profile बटन पर क्लिक किया है तो Welcome पहे प्रदर्शित होगा , जिसमें Continue to Gmail बटन पर क्लिक करें । 
6.  ई-मेल एकाउंट बनने के बाद उसकी Confirmation Information यूजर को दे दी जाएगी व निम्न वेब पेज ब्राऊज़र पर प्रस्तुत होगा । 

  (ii) ई-मेल को देखना (Viewing an E-Mail) ई-मेल एकाउंट बना लेने के बाद यूजर Sign in कर सकता है अर्थात ई-मेल एकाउंट को खोल सकता है और अपनी ई-मेल को देख सकता है। इसके लिए यूजर को उस वेबसाइट के Homepage पर जाना होगा , जिस पर इसका ई-मेल एकाउंट है। यहाँ Sign in करने के लिए एक डॉयलोग बॉक्स वेब पेज पर प्रदर्शित होगा । 
    इसमें E-mail टेक्स्ट बॉक्स में अपनी ई-मेल ID तथा Password टेक्स्ट बॉक्स में उस ई-मेल ID का पासवर्ड प्रविष्ट करके Sign in बटन पर क्लिक करें । यदि ई-मेल - ID तथा पासवर्ड एक दम सही है तो यूजर Gmail ई-मेल बॉक्स खुल जायेगा । इसके पश्चात निम्न विंडो प्रदर्शित होगी- 

  इसमें सामान्यतया पहले Inbox फोल्डर की सामग्री अर्थात प्राप्त हुए ई-मेल सन्देशों की सूची दिखाई होगी , जिसमें दिनांक , भेजने वाले का नाम , विषय आदि सूचनाएं होती है। किसी संदेश को पढ़ने के लिए कर्सर को उस संदेश पर लाकर क्लिक करें , जहां माउस प्वॉइंटर हाथ के चिन्ह में बदल जाता है ।
  
(iii) नई ई-मेल बनाना और भेजना (Creating New E-Mail and send it):- Log in करने के पश्चात यदि यूजर अपने मित्रों और सम्बन्धियों को ई-मेल करना चाहता है तो COMPOSE बटन पर क्लिक करें जिससे New Message विण्डो प्रस्तुत होगी । 

इसमें To: टेक्स्ट बॉक्स में रेसिपीएंट का ई-मेल एड्रेस व Subject में ई-मेल का विषय तथा Body में टेक्स्ट टाइप कर Send बटन पर क्लिक करने से वह ई-मेल उस रेसिपीएंट को तुरन्त भेज दिया जाता है। इसके अतिरिक्त यदि यूजर किसी फ़ाइल (.doc, pdf, jpg इत्यादि) को भेजना चाहता है तो Attach files पर क्लिक करके फ़ाइल अटैच कर सकता है। ई-मेल में टेक्स्ट फॉर्मेटिंग , Cc, Bcc के विकल्प भी उपलब्ध होते है। 

कुछ महत्वपूर्ण विकल्पों का विवरण इस प्रकार है - 
     1.Cc (Carbon Copy) इस फीचर के द्वारा ई-मेल की कॉपी अर्थात कार्बन कॉपी को अन्य रेसिपीएंट को भेजा जाता है तथा To: रेसिपीएंट को यह सूचना दे दी जाती है कि इस ई-मेल की कॉपी अन्य किन-किन व्यक्तियों को भेज दी गयी है । 

     2. Bcc (Blind Carbon Copy) इस फीचर में To तथा Cc रेसिपीएंट को यह नही पता होता कि Bcc किन-किन यूजरों को भेजी गई है । ई-मेल में Cc तथा Bcc दोनों विकल्पों का प्रयोग वैकल्पिक होता है । 

    3. टेक्स्ट फॉर्मेटिंग (Text Formatting) इस फीचर के द्वारा हम टेक्स्ट को बोल्ड , इटैलिक , अंडरलाइन आदि कर सकते है । इसके द्वारा हम टेक्स्ट का फॉन्ट साइज , कलर तथा अलाइनमेंट आदि भी बदल सकते है । 
(iv) ई-मेल मैसेज का जवाब देना (Replying E-Mail Messages) किसी ई-मेल का जवाब देने के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण किया जाता है - 
    ●   जिस ई-मेल का जवाब देना है, उसे ओपन करें ।  
    ●   केवल ई-मेल भेजने वाले को जवाब देने के लिए 'Reply' विकल्प पर क्लिक करें । 
    ●   To और Cc बॉक्सों के सभी रेसिपीएंट को जवाब देने के लिए 'Reply to all' विकल्प पर क्लिक करें । 
(v) ई-मेल मैसेज को फॉरवर्ड करना (Forwarding E-Mail Message)  किसी ई-मेल को फॉरवर्ड करने के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण किया जाता है - 
    ●   यूजर जिस मेल को फॉरवर्ड करना चाहते है, उसे ओपन करें । 
    ●   'Forward' विकल्प पर क्लिक करें । 
    ●   To, Cc और Bcc बॉक्सों में रेसीपीएंट्स नाम एन्टर करें । 
(vi) ई-मेल को सोर्ट तथा सर्च करना (Sorting and Searching of E-mail)   ई-मेल को सॉर्ट करने के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण किया जाता है - 
    ●   Setting बटन पर क्लिक करें ।
    ●   Inbox टैब पर क्लिक करें ।
    ●   Inbox type लिस्ट बॉक्स में अपनी इच्छानुसार विकल्प जैसे - Default , Important first, Unread first, Shared first तथा Priority first का चयन करें । Save changes बटन पर क्लिक करें । इसके पश्चात आपकी इच्छानुसार Inbox में ई-मेल सोर्ट हो जाएगी । 
ई-मेल को सर्च करना :- ई-मेल को सर्च करने के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण किया जाता है-
    ●   सबसे ऊपर स्थित टेक्स्ट बॉक्स में उस ई-मेल की जानकारी ;जैसे - भेजने वाले का नाम , विषय आदि प्रविष्ट करें जिसे आप सर्च करने चाहते है । 
    ●   Search बटन पर क्लिक करें ।
    ●   इसके पश्चात सर्च की गई जानकारी से सम्बंधित ई-मेल की सूची प्रदर्शित हो जाएगी । 


[3]  इन्फॉर्मेशन सिक्योरिटी (Information Security):- इन्फॉर्मेशन सिक्योरिटी अनाधिकृत पहुँच (Unauthorized access), उपयोग (Uses), प्रकटीकरण (Disclosure), विघटन (Dissolution), संशोधन (Modification), अवलोकन (Observation), निरीक्षण और विनाश से सूचना की रक्षा करने की प्रथा है। हमारे आधुनिक युग में सबसे अधिक सूचना कम्प्यूटर पर संगृहीत की जाती है। जो निम्न है- 
    ●   इन्फॉर्मेशन के प्रोटेक्शन (Protection) और इसके महत्वपूर्ण तत्व , उस सिस्टम और हार्डवेयर को सम्मिलित करते हैं, जो इनफार्मेशन को प्रयोग , स्टोर और ट्रांसमिट करता है। 
    ●   अवश्य टूल्स - पॉलिसी , जागरूकता , ट्रेनिंग , एजुकेशन , टेक्नोलॉजी ।
    ●   C. I. A त्रिभुज Confidentiality (गोपनीयता), Integrity (अखण्डता) और Availability (उपलब्धता) के आधार पर निर्भर करता है। 
    ●   C. I. A त्रिभुज अब इन्फॉर्मेशन की महत्वपूर्ण विशेषताओं की लिस्ट को विस्तारित (Expand) करता है । 



[3.1] सूचना सुरक्षा जागरूकता (Information Security Awareness):-
 साइबर सुरक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका निरन्तर चलती रहेगी, लोगों में प्रारम्भ और बढ़ावा देने के लिए एवम विद्यमान जागरूकता और प्रयास उन तक पहुचाने के लिए साइबर सुरक्षा जागरूकता की एक विशाल भूमिका रही है और आगे भी रहेगी । 
   क्षेत्र या आकार का विचार किये बिना , प्रत्येक नागरिक, सभी स्तरों की सरकार , शिक्षा संस्थान और उद्योगों को सुरक्षित साइबरस्पेस को बढ़ावा /समर्थन देना चाहिए । समाधान में सम्मिलित प्रमुख स्टॉकहोल्डर्स की सूची असीमित है और इसीलिए समस्या का समाधान व्यवस्थित सार्वजनिक निजी सहभागिता (Collaboration) के परिणाम के रूप में सामने आएगा । 
    सम्पूर्ण देश में जनसाधारण , शिक्षा संस्थान और निजी उद्योगों में साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका के प्रति एक राष्ट्रीय जागरूकता अभियान और एक रणनीति चलाने की आवश्यकता है । 
    पाठशाला के विद्यार्थी , शिक्षकगण और पाठशालाएँ तथा विद्यापीठ इन सब की भूमिका को पहचानते हुए , उन सब तक साइबर सुरक्षा पहुचाने के लिए एक रणनीति (Strategy)  बनाई गई है। साथ ही , हमें प्रत्येक समर्पित राज्य और स्थानीय जनसेवकों को, जिन्होंने राज्य और स्थानीय सरकारी एजेंसियों में साइबर सुरक्षा जागरूकता को बढ़ावा देने का उत्तरदायित्व बाँटा गया है, उन्हें संगठित करना होगा । 


[3.2] सिक्योरिटी (Security):- कम्प्यूटर सिक्योरिटी से थ्रेट एक ऐसा सम्भावित खतरा है जो अतिसंवेदनशील सिक्योरिटी को भेदने के काम में लाया जाता है । 
   अधिकतर संगठनों में इनफार्मेशन एक ऐसी सम्पदा है जो कम्पनी को उस इन्फॉर्मेशन के उपयोग के द्वारा एक प्रतियोगात्मक लाभ प्रदान कराती है । इस इन्फॉर्मेशन को प्राप्त करने के लिए हमारे कम्प्यूटर , मोबाइल फ़ोन , इत्यादि में थ्रेटस आते है, जिससे व्यापार की सामान्य प्रक्रिया में अड़चनें आती रहती है । 
   कम्प्यूटर अटैकर्स बहुत से टूल्स, मेथड्स और टेक्नीक्स का प्रयोग कम्प्यूटर में स्टोर संवेदनशील सूचना को प्राप्त करने, व्यापार की प्रक्रिया में अड़चन डालने इत्यादि के लिए करते है।  
   इस प्रकार की अड़चनों से बेचने के लिए , ताकि व्यापार की सामान्य प्रक्रिया में अड़चन न आये और अपनी संवेदनशील इन्फॉर्मेशन को सुरक्षित रखने के लिए कम्प्यूटर सिक्योरिटी आवश्यक है । कम्प्यूटर सिक्योरिटी का उद्देश्य सरलता से उपलब्ध इन्फॉर्मेशन को सिक्योरिटी प्रदान करना है । 


[3.3] कॉमन इन्फॉर्मेशन सिक्योरिटी थ्रेटस (Common Information Security Threats):- अपनी संवेदनशील सूचना को सुरक्षित रखने के लिए हमें कुछ प्रमुख इन्फॉर्मेशन सिक्योरिटी थ्रेटस और उनसे बचने के उपायों के प्रति जागरूकता बनाये रखनी चाहिए । कुछ महत्वपूर्ण इन्फॉर्मेशन सिक्योरिटी थ्रेटस निम्न प्रकार है - 
अनाधिकृत प्रवेश  इसमें किसी संवेदनशील सूचना का उसके स्वामी (Owner) की अनुमति के बिना ही सफलतापूर्वक प्रयोग कर लिया जाता है। 
  संवेदनशील सूचना को सुरक्षित रखने के बजाय   
●   हमें अपने कम्प्यूटर में लगी फ़ायरवॉल को उचित तरीके से कॉन्फ़िगर करना चाहिए । सिस्टम में अप-टू-डेट मालवेयर प्रिवेंशन सॉफ्टवेयर (Prevention software) इंस्टॉल होने चाहिए । 
●   सभी संवेदनशील सूचना को पासवर्ड , इन्फॉर्मेशन और उचित कोडिंग माध्यम द्वारा सुरक्षित रखना चाहिए । 
डाटा लीकेज  किसी संवेदनशील सूचना या व्यक्तिगत सूचना का किसी दुर्घटना के द्वारा या जान- बूझकर प्रदर्शन करना , डाटा लीकेज के अन्तर्गत आता है । 
   डाटा को सुरक्षित रखने का उपाय - 
●    संवेदनशील सूचना को कूटबद्ध करके रिमूवेबल स्टोरेज मीडिया में स्टोर करके सुरक्षित रखना चाहिए । 
मोबाइल डिवाइस अटैक  किसी मोबाइल डिवाइस या उसमे स्टोर संवेदनशील सूचना को कॉलिसियस अटैक के द्वारा या अनाधिकृत रूप से एक्सेस करना ही मोबाइल डिवाइस अटैक है । इसके अन्तर्गत मोबाइल, टेबलेट, इत्यादि हाथ से पकड़ने वाले डिवाइस पर होने वाले अटैक आते है।  मोबाइल डिवाइस पर होने वाले अटैक से बचने का उपाय - 
●   हमें अपना हैंडहेल्ड डिवाइस अपने साथ रखना चाहिए तथा उसमें उपस्थित सूचना को गोपनीय रखना चाहिए । 
सोशल इंजीनियरिंग  वह एक ऐसा नॉन -टेक्निकल तरीका है जो हैकर के द्वारा संवेदनशील सूचना को प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाया जाता है । इसमें हैकर मानसिक रूप से व्यक्ति को मैनिपुलेट करके संवेदनशील सूचना को प्राप्त कर लेता है । सोशल इंजीनियरिंग से बचने के उपाय निम्न है - 
●   संवेदनशील सूचना को देने से पहले हमें दी गई रिक्वेस्ट को वेरीफाई कर लेना चाहिए । 
●   संवेदनशील सूचना को सुरक्षित रखने के लिए उपयोग किए गए पासवर्ड को, किसी अन्य के साथ शेयर नहीं करना चाहिए । 
इंसाइडर्स कम्पनी के ऐसे मजदूर या कर्मचारी जो कम्पनी की संवेदनशील सूचना को चुराने की इच्छा रखते हों , इंसाइडर्स की श्रेणी के अन्तर्गत आते है । इनसे बचने के उपाय है- 
●   शंकि वर्कर्स या कर्मचारियों की एक्टिविटी की रिपोर्ट पर नज़र रखनी चाहिए । सूचना उन्ही वर्कर्स या कर्मचारियों को देखने की अनुमति होनी चाहिए, जिन्हें उसकी आवशयक्ता है। अन्य के लिए , इस प्रकार की सूचना बाधित होनी चाहिए । 
फिशिंग  संवेदनशील सूचना , जैसे -यूजरनेम ,पासवर्ड , क्रेडिट कार्ड की डिटेल इत्यादि को प्राप्त करना फिशिंग के अन्तर्गत आता है । 
  फिशिंग से बचने का उपाय -।
●    किसी अनजाने व्यक्ति के द्वारा भेजे गए मेल में मांगी गई संवेदनशील सूचना वाले मेल को नही खोलना चाहिए । 
स्पैम  वे सभी अनचाही ई-मेल जो Mostly Advertising के उद्देश्य से बहुत बड़ी मात्रा में इंटरनेट यूजर को भेजी जाती है, स्पैम कहलाती है । ऐसे व्यक्ति जो बड़ी मात्रा में अवांछित ई-मेल संदेश भेजता है, स्पैमर कहलाता है।  
   स्पैम से बचने के उपाय - 
●   स्पैम फ़िल्टर का उपयोग करना चाहिए । 
●   स्पैम ई-मेल का Reply नही करना चाहिए । 
●   स्पैम ई-मेल से सम्बंधित लिंक पर Click नही करना चाहिए । 
डिनायल ऑफ सर्विस  इसके द्वारा ऑथोराइज़ यूजर (Authorise User) अपने सिस्टम में स्टोर डाटा को एक्सेस नही कर सकता है । 
डिनायल ऑफ सर्विस से बचने के उपाय - 
●   लॉग रिव्यु के द्वारा नेटवर्क को मॉनिटर करते समय रहना चाहिए । 
●   सभी नेटवर्क को सिक्योरिली कॉन्फ़िगर करना चाहिए । 

आइडेन्टिटी थेफ़्ट  अपराध करने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति की निजी इन्फॉर्मेशन को उन व्यक्ति को बिना बताएं , अपने लाभ के लिए उपयोग करना आइडेंटिटी थेफ़्ट के अन्तर्गत आता है । आइडेंटिटी थेफ़्ट से बचने के उपाय निम्न है -
●   अपनी व्यक्तिगत सूचना किसी अन्य वेबसाइट या फिर किसी अविश्वसनीय व्यक्ति को नही देनी चाहिए । 
●   जब हमें अपनी व्यक्तिगत सूचना की आवश्यक्ता नही होती तो हमें यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि हमारी इन्फॉर्मेशन सुरक्षित स्टोर है। 









 











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