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कम्प्यूटर नेटवर्किंग | Computer Networking | कम्प्यूटर नेटवर्क का अर्थ | Meaning of Computer Network | नेटवर्किंग के लाभ | Benefits of Networking | कम्प्यूटर नेटवर्क के अवयव | Components of Computer Network | कम्प्यूटर नेटवर्क के प्रकार | Types of Computer Network | नेटवर्क टोपोलॉजी | Network Topology | नेटवर्किंग युक्तियाँ | Networking Devices



[1] कम्प्यूटर नेटवर्क का अर्थ (Meaning of Computer Network) :-
     जब दो या दो से अधिक कंप्यूटर किसी माध्यम की सहायता से परस्पर सम्पर्क में रहते है तो इस व्यवस्था को कप्यूटर नेटवर्क कहते है । इससे महत्वपूर्ण डाटा तथा सूचनाओं को विभिन्न कम्प्यूटरों में उपलब्ध कराया जाता है । 
       कम्प्यूटर नेटवर्क एक से अधिक कम्प्यूटर को किसी संचार माध्यम से आपस मे इस प्रकार जोड़ता है कि वे अपना संदेश दूसरा को भेज सकें तथा उनसे प्राप्त भी कर सके । चित्र में एक सामान्य कंप्यूटर अपने नेटवर्क में रहते हुए दूसरे नेटवर्क के कप्यूटर के साथ भी संपर्क कर सकते है । 
         किसी नेटवर्क में डाटा के ट्रांसफर की मूल तकनीक को पैकेट स्विचिंग (Packet Switching) कहा जाता है । किसी उपयोगकर्ता द्वारा भेजे जाने वाले डाटा , जिसे प्रायः संदेश (Message) कहा जाता है, को कुछ छोटी इकाइयों में तोड़ा जाता है , जिन्हें पैकेट (Packet) कहते है । प्रत्येक पैकेट को अलग अलग मानकर किसी निश्चित पते पर नेटवर्क के माध्यम से भेजा जाता है । इन पैकेटों को तब तक एक पैकेट स्विचिंग एक्सचेंज (PSE)  से दूसरे एक्सचेंज तक भेजा जाता रहता है , जब तक कि वे अपने निश्चित गंतव्य (Destination) तक न पहुंच जाए । प्रत्येक एक्सचेंज में पैकेटों की जांच की जाती है और फिर उन्हें आगे भेज दिया जाता है । 



[1.1] नेटवर्किंग के लाभ (Benefits of Networking):-

         कंप्यूटर की नेटवर्किंग से हमे निम्नलिखित लाभ होते है - 
   (i) साधनों का साझा करना(Resource Sharing):-     हम नेटवर्क के किसी भी कंप्यूटर से जुड़े हुए साधन का उपयोग नेटवर्क के अन्य कम्प्यूटरों पर कार्य करते हुए कर सकते है । उदाहरण के लिए , यदि किसी कंप्यूटर के साथ लेजर प्रिंटर जुड़ा हुआ है, तो नेटवर्क के अन्य कम्प्यूटरों से उस प्रिंटर पर कोई भी सामग्री प्रिंट की जा सकती है । 

  (ii) डाटा का तीव्र सम्प्रेषण (Speedy Transmission of Data) :- कम्प्यूटरों के नेटवर्किंग से दो कम्प्यूटरों के बीच की सूचना का आदान प्रदान तीव्र तथा सुरक्षित रूप से होता है इससे कार्य की गति तेज होती है और समय की भी बचत होती है । 

(iii) विश्वसनीयता (Reliability):- नेटवर्किंग में किसी फ़ाइल की दो या अधिक प्रतियाँ (Copies) अलग अलग कम्प्यूटरों पर स्टोर की जा सकती है । यदि किसी कारणवश एक कंप्यूटर खराब या असफल हो जाता है , तो वह डाटा दूसरे कम्प्यूटरों से प्राप्त हो सकता है । इस प्रकार नेटवर्क के कंप्यूटर एक दूसरे के लिए बैकअप का कार्य करते है जिससे उसकी विश्वनीयता बढ़ती है । 



[1.2] कंप्यूटर नेटवर्क के अवयव (Components Of Computer Network):- 
 कोई कंप्यूटर नेटवर्क के विभिन्न तत्वों या अवयवों का समुच्चय होता है । इनमे से कुछ प्रमुख अवयवों का परिचय निम्नलिखित है - 

  सर्वर
  यह नेटवर्क का सबसे प्रमुख अथवा केंद्रीय कंप्यूटर होता है । नेटवर्क के अन्य सभी कम्प्यूटर सर्वर से जुड़े होते है । सर्वर क्षमता और गति की दृष्टि से अन्य सभी कम्प्यूटरों से श्रेष्ठ होता है और प्रायः नेटवर्क का अधिकांश अथवा समस्त डाटा सर्वर पर ही रखा जाता है । 

 नोड
      सर्वर के अतिरिक्त / क्लाइंट नेटवर्क के अन्य सभी कम्प्यूटरों को नोड कहा जाता है । ये वे कंप्यूटर होते है , जिन पर उपयोगकर्ता कार्य करते है । प्रत्येक नोड का एक निश्चित नाम और पहचान होती है । कई नोड अधिक शक्तिशाली होते है । ऐसे नोडों को प्रायः वर्कस्टेशन (Workstation) कहा जाता है । नोडों को प्रायः स्लाइन्ट (Client) भी कहा जाता है । 


  नेटवर्क केबल 
  जिन केबलों के द्वारा नेटवर्क के कंप्यूटर आपस मे जुड़े होते है , उन्हें नेटवर्क केबल कहा जाता है । सूचनाएं एक कम्प्यूटर से नेटवर्क के दूसरे कम्प्यूटर तक केबलों से होकर ही जाती है । इनको प्रायः बस (Bus) भी कहा जाता है। 


 नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम 
       यह ऐसा सॉफ्टवेयर है जो नेटवर्क के कम्प्यूटरों के बीच सम्बन्ध तय करता है और उनके बीच सूचना के आवागमन को नियंत्रित करता है । यह सॉफ्टवेयर सर्वर में लोड किया जाता है । 

 नेटवर्क कार्ड
   यह एक ऐसा सर्किट होता है जो नेटवर्क केबलों को कम्प्यूटरों से जोड़ता है। इन कार्डों की सहायता से डाटा का आवागमन तीव्र होता है । ये कार्ड नेटवर्क से जुड़े प्रत्येक कंप्यूटर के मदरबोर्ड में लगाये जाते है । इनको ईथरनेट कार्ड (Ethernet) भी कहा जाता है ।


 [1.3] कम्प्यूटर नेटवर्क के प्रकार (Types of Computer Network):-
                नेटवर्कों को उनके कम्प्यूटरों की भौगोलिक स्थिति के अनुसार मुख्यतः तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है - 

(i) लोकल एरिया नेटवर्क 
            ऐसे नेटवर्को के सभी कम्प्यूटर एक सीमित क्षेत्र में स्थित होते है । यह क्षेत्र लगभग एक किलोमीटर की सीमा में होना चाहिए ; जैसे - कोई बड़ी बिल्डिंग या बिल्डिंगों का समूह । लोकल एरिया नेटवर्क में जोड़े गए उपकरणों की संख्या अलग अलग हो सकती है ।
         इन उपकरणों को किसी संचार केबल द्वारा जोड़ा जाता है । लोकल एरिया नेटवर्क (Local Area Network, LAN) के द्वारा कोई संगठन अपने कम्प्यूटरों , टर्मिनलों , कार्यस्थलों तथा अन्य बाहरी उपकरणों को एक दक्ष (Efficient) तथा मितव्ययी (Cost Effective) विधि से जोड़ सकता है, ताकि वे आपस मे सूचनाओं का आदान प्रदान का सकें तथा सबको सभी साधनों का लाभ मिल सके । 



(ii) वाइड एरिया नेटवर्क 
              वाइड एरिया नेटवर्क (Wide Area Network, WAN) से जुड़े हुए कम्प्यूटर तथा उपकरण एक दूसरे से हजारों किलोमीटर की भौगोलिक दूरी पर भी स्थित हो सकते है । इनका कार्यक्षेत्र कई महाद्वीपों तक फैला हो सकता है । यह एक बड़े आकार का डाटा नेटवर्क होता है । इसमें डाटा के संचरण की दर लोकल एरिया नेटवर्क की तुलना में कम होती है।  
   अधिक दूरी के कारण प्रायः इनमे माइक्रोवेव स्टेशनों या संचार उपग्रहों (Communication Satellites) का प्रयोग संदेश आगे भेजने वाले स्टेशनों की तरह किया जाता है । माइक्रोवेव नेटवर्क दो रिले टावरों के बीच आवाज या डाटा को रेडियो तरंगों के रूप में भेजते है । प्रत्येक टावर उस संदेश को प्राप्त करके उत्तेजित (Amplify) करता है और फिर आगे भेज देता है । 


वाइड एरिया नेटवर्क का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । वे आजकल के वितीय जगत (शेयर मार्केट , बैंक , वितीय संस्थाओं आदि ) के लिए अनिवार्य हो गए है । 



(iii) मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क 

            जब बहुत सारे लोकल एरिया नेटवर्क अर्थात लैन किसी नगर या शहर के अन्दर एक दूसरे से जुड़े रहते है, तो इस प्रकार के नेटवर्क को मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क कहा जाता है । 
         इसे संक्षेप में मैन भी कहते हैं , जिसकी गति 10-100Mbits/ sec होती है । ये काफी महँगे नेटवर्क होते है जो फाइबर ऑप्टिकल केबल से जुड़े होते है । ये टेलीफोन या केबल ऑपरेटर और माइक्रोवेव लिंक द्वारा प्रदान किये जाते है।  




 [1.4] नेटवर्क टोपोलॉजी (Network Topology):-
              कम्प्यूटर नेटवर्क में कम्प्यूटरों को आपस मे जोड़ने के तरीके को टोपोलॉजी कहते है । किसी टोपोलॉजी के प्रत्येक कम्प्यूटर ,नोड या लिंक स्टेशन कहलाते है । दूसरे शब्दों में , टोपोलॉजी नेटवर्क में कम्प्यूटरों को जोड़ने की भौगोलिक व्यवस्था होती है । इसके द्वारा विभिन्न कम्प्यूटर एक दूसरे से परस्पर सम्पर्क स्थापित कर सकते है ।
 नेटवर्क टोपोलॉजी निम्न प्रकार की होती है । 


बस टोपोलॉजी 
      इस टोपोलॉजी में एक लंबे केबल से युक्तियाँ जुड़ी होती है । यह नेटवर्क इंस्टालेशन छोटे अथवा अल्पकालीन ब्रॉडकास्ट के लिए होता है। इस प्रकार के नेटवर्क टोपोलॉजी का प्रयोग ऐसे स्थानों पर किया जाता है , जहां अत्यंत उच्च गति के कम्युनिकेशन चैंनल का प्रयोग सीमित क्षेत्र में किया जाता है । यदि कम्युनिकेशन चैंनल  खराब हो जाए तो पूरा नेटवर्क खराब हो जाता है । 



स्टार टोपोलॉजी 
        इस टोपोलॉजी के अन्तर्गत एक होस्ट कंप्यूटर होता है , जिससे विभिन्न लोकल कम्प्यूटरों (नोड) को सीधे जोड़ा जाता है। यह होस्ट कम्प्यूटर हब (Hub) कहलाता है । इस हब के फेल होने से पूरा नेटवर्क फेल हो सकता है । 


रिंग टोपोलॉजी 
      इस टोपोलॉजी में कोई हब या एक लंबी केबल नही होती । सभी कम्प्यूटर एक गोलाकार आकृति के रूप में केबल द्वारा जुड़े होते है । प्रत्येक कम्प्यूटर अपने अधीनस्थ कम्प्यूटर से जुड़ा होता है । इसमें किसी भी एक कम्प्यूटर के खराब होने पे सम्पूर्ण रिंग बाधित हो जाती है। यह गोलाकार आकृति सर्कुलर नेटवर्क (Circular Network) भी कहलाती है । 



मैश टोपोलॉजी   
     इस टोपोलॉजी का प्रत्येक कम्प्यूटर ,नेटवर्क में जुड़े अन्य सभी कम्प्यूटरों से सीधे जुड़ा होता है । इसी कारण इसे Point- to-Point नेटवर्क या Completely Connected नेटवर्क भी कहा जाता है । इसमें डाटा के आदान प्रदान का प्रत्येक निर्णय कम्प्यूटर स्वयं ही लेता है । 

ट्री टोपोलॉजी  

      इस टोपोलॉजी में एक 
नोड तथा दूसरी नोड से तीसरी नोड , किसी पेड़ की शाखाओं (Branches) की तरह जुड़ी होती है । यही ट्री (Tree) टोपोलॉजी कहलाती है । ट्री टोपोलॉजी , स्टार टोपोलॉजी का ही विस्तृत रूप है । इस टोपोलॉजी में रुट (Root) नोड सर्वर की तरह कार्य करता है । 


[1.5] इंटरकनेक्टिंग प्रोटोकॉल्स (Interconnecting Protocols):- 
               प्रोटोकॉल नियमो का वह सेट है, जो डाटा कम्युनिकेशन की देख रेख करता है । कुछ प्रोटोकॉल इस प्रकार है - 
ट्रान्समिशन कन्ट्रोल प्रोटोकॉल / इन्टरनेट प्रोटोकॉल 
  यह end to end कनैक्टिविटी (जिसमे डाटा की फॉर्मेटिंग , एड्रेसिंग संचरण के रूट्स और इसे प्राप्त करने की विधि इत्यादि सम्मिलित है)  करता है। TCP सन्देश को प्रेषक के पास ही पैकेटों के एक सेट में बदल देता है , जिसे प्राप्तकर्ता के पास पुनः इकट्ठा कर सन्देश को वापस हासिल कर लिया जाता है ।  इसे - 

कनेक्शन ऑरिएंटिड 
प्रोटोकॉल भी कहते है । IP विभिन्न कम्प्यूटरों को नेटवर्क स्थापित करके आपस मे संचार करने की अनुमति प्रदान करता है । IP नेटवर्क पर पैकेट भेजने का कार्य सम्भालती है । यह अनेक मानकों (Standard) के आधार पर पैकेटों के एड्रेस को बनाए रखता है । प्रत्येक IP पैकेट में स्रोत (Source) तथा गंतव्य (Destination) का एड्रेस होता है । 


फ़ाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल   
   इस प्रोटोकॉल के द्वारा इंटरनेट उपयोगकर्ता अपने कम्प्यूटरों से फाइलों को विभिन्न वेबसाइटों पर अपलोड कर सकते है या वेबसाइट से अपने PC में डाउनलोड कर सकते है । 

हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल
  यह इस बात को सुनिश्चित करता है कि संदेशों को किस प्रकार फॉर्मेट (Format) में संचरित (Transmitted) किया जाता है व विभिन्न कमाण्डों (Commands) के उत्तर (Answer) में वेब सर्वर तथा ब्राऊज़र क्या ऐक्शन लेंगे । HTTP एक स्टेटलेस प्रोटोकॉल (Stateless protocol) है, क्योकि इसमे प्रत्येक निर्देश स्वतंत्र होकर क्रियान्वित होते है । 

टेलनेट प्रोटोकॉल 
  टेलनेट सेशन वैध यूजरनेम तस्थ पासवर्ड को प्रविष्ट करने पर प्रारम्भ हो जाता है । यह एक नेटवर्क प्रोटोकॉल है, जिसमे वर्चुअल कनेक्शन का प्रयोग करके द्विदिशीय टेक्स्ट ऑरिएंटिड कम्युनिकेशन को लोकल एरिया नेटवर्क पर प्रदान किया जाता है । 

यूज़नेट प्रोटोकॉल   
  इसके अन्तर्गत कोई केंद्रीय सर्वर या एडमिनिस्ट्रेटर नही होता है। इस सेवा के तहत इन्टरनेट उपयोगकर्ताओं के एक समूह किसी भी विशेष विषय पर अपने विचार /सलाह आदि का आपस मे आदान प्रदान कर सकते है । 

प्वॉइंट-टू-प्वॉइट प्रोटोकॉल   
 यह एक डायल अकाउण्ट है, जिसमे कम्प्यूटर को इन्टरनेट पर सीधे जोड़ा जाता है । इस आकार के कनेक्शन में एक मॉडम की आवश्यक्ता होती है , जिसमे डाटा को 9600 बिट्स/ सेकण्ड्स से भेजा जाता है । 

वायरलेस एप्लिकेशन प्रोटोकॉल  
 यह मोबाइल डिवाइसों में प्रयोग होने वाले वेब ब्राऊज़र है । यह प्रोटोकॉल वेब ब्राऊज़र को सेवाएं प्रदान करता है । 

वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल
  यह IP नेटवर्को पर ध्वनि संचार का वितरण करने में प्रयोग होता है, जैसे -IP कॉल्स । 


[1.6] नेटवर्किंग युक्तियाँ (Networking Devices):- 

                     सिग्नल्स की वास्तविक शक्ति को बढ़ाने के लिए नेटवर्किंग युक्तियों (Networking Decvices) का प्रयोग किया जाता है । इसके अतिरिक्त नेटवर्किंग युक्तियों का प्रयोग दो या दो से अधिक कम्प्यूटरों को आपस मे जोड़ने के लिए भी किया जाता है । कुछ प्रमुख नेटवर्किंग युक्तियाँ निम्न है - 

मॉडम
  वह मोड्यूलेटर डिमोडयूलेटर का संक्षिप्त नाम है । मॉडम (Modem) एनालॉग सिग्नल्स को डिजिटल सिग्नल्स में तथा डिजिटल सिग्नल्स को एनालॉग सिग्नल्स में बदलता है । एक मॉडम को सदैव टेलीफोन लाइन तथा कम्प्यूटर के मध्य लगाया जाता है । डिजिटल सिग्नल्स को एनालॉग सिग्नल्स में बदलने की प्रक्रिया को मॉड्यूलेशन तथा एनालॉग सिग्नल्स को डिजिटल सिग्नल्स में बदलने की प्रक्रिया को डिमोडयूलेशन कहते है । 
  मॉडम के कुछ प्रकार निम्न है - 

(i) बाह्य मॉडम (External Modem)
  यह साधारण प्रकार का मॉडम होता है जो कम्प्यूटर में स्थित न होकर, अलग से डिवाइस के रूप में होता है । बाह्य मॉडम कम्प्यूटर के सीरियल पोर्ट में एक केबल द्वारा जोड़ा जाता है, इसमे स्वयं की पॉवर सप्लाई होती है । 

(ii) आन्तरिक मॉडम (Internal Modem)
   यह कम्प्यूटर के आंतरिक भाग में इनस्टॉल रहता है । जब किसी प्रोग्राम को रन किया जाता है , तो आंतरिक मॉडम अपने आप एक्टिवेट हो जाता है तथा जब प्रोग्राम से बाहर निकलते है तो आंतरिक मॉडम अपने आप ऑफ (Off) हो जाता है 

(iii) पीसी कार्ड मॉडम (PC Card Modem)
  इस प्रकार के मॉडम को पोर्टेबल कम्प्यूटर (जैसे-कम्प्यूटर) के लिए डिज़ाइन किया गया है । पीसी मॉडम बाह्य तथा आंतरिक मॉडम का सयोजन (Combination) होता है । 

(iv) वायरलेस मॉडम (Wireless Modem)
   यह मॉडम बाह्य मॉडम, आन्तरिक मॉडम या पीसी मॉडम , किसी भी प्रकार का हो सकता है । अन्य सभी मोडमों को पीसी से जोड़ने के लिए तार की आवश्यकता होती है, परन्तु वायरलेस मॉडम बिना तार के सिग्नलों (संकेतों) को भेजता तथा प्राप्त करता है । 


रिपीटर
          यह ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होते है जो निम्न स्तर (Low Level) के सिग्नल्स को प्राप्त (Receive) करके , उन्हें उच्च स्तर का बनाकर वापस भेजते है । इस प्रकार सिग्नल्स लम्बी दूरियों को बिना बाधा के तय कर सकते है । रिपीटर्स (Repeaters) कमजोर पड़ चुके सिग्नल्स एवं उनसे होने वाली समस्याओं से बचाता है । रिपीटर्स का प्रयोग नेटवर्क में कम्प्यूटरों को एक दूसरे से जोड़ने वाले केबल की लंबाई बढ़ाने में किया जाता है । इनकी उपयोगिता सर्वाधिक उस समय होती है, जब कम्प्यूटरों को आपस मे जोड़ने के लिए काफी लंबी केबल की आवश्यक्ता होती है । 

 हब 
         इसका प्रयोग ऐसे स्थान पर किया जाता है, जहां नेटवर्क की सारी केबल मिलती है । हब (Hub) एक बार प्रकार का रिपीटर होता है , जिसमे नेटवर्क चैनलों को जोड़ने के लिए पोटर्स लगे होते है । सामान्यतया एक हब में 4, 8, 16 अथवा 24 पोर्ट लगे होते है । इसके अतिरिक्त हब पर प्रत्येक पोर्ट के लिए एक इंडिकेटर लाइट Light Emitting Diode- LED लगी होती है । जब पोर्ट से जुड़ा कम्प्यूटर ऑन होता है, तब लाइट जलती रहती है । हब में कम्प्यूटरों को जोड़ना अथवा हबों को आपस मे जोड़ना या हटाना बहुत सरल होता है। 
       एक बड़े हब में लगभग 24 कम्प्यूटरों को जोड़ा जा सकता है । इससे अधिक कम्प्यूटरों को जोड़ने के लिए एक अतिरिक्त हब का प्रयोग किया जा सकता है।  
            इस प्रक्रिया (दो-या-दो से अधिक हबों को आपस मे जोड़ने) को डेज़ी चेनिंग कहते हैं । हब के कुछ मूल प्रकार निम्न है- 
   (i)  पैसिव हब (Passive Hub)
      इस हब के लिए विधुत स्रोत की आवश्यकता नहीं होती, क्योकि ये किसी सिग्नल को फिर से उत्पन्न नही करता । पैसिव हब में केबल की लंबाई अधिक प्रयोग की जाती है । इसलिए पैसिव हब का उपयोग लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गया है । पैसिव हबों को कभी कभी कॉन्सन्ट्रेटर (Concentrator) भी कहा जाता है । 
 (ii) एक्टिव हब (Active Hub)
         एक्टिव हब आवश्यकता होने पर सिग्नलों को फिर से उत्पन्न करते हैं , इसलिए इनके लिए विधुत कनेक्शन को भी आवश्यकता होती है । एक्टिव हब रिपीटर का भी कार्य करता है।  
  (iii) इंटेलिजेंट हब (Intelligent Hub)
       इस हब का प्रयोग नेटवर्क मैनेजमेन्ट में किया जाता है । यह हब कोलिजन डिटेक्शन में भाग लेता है। यह हब एक से अधिक टोपोलॉजी की सुविधा प्रदान करता है तथा आभासी लैन (Virtual LAN) बनाने में भी भाग लेता है । 


  ब्रिज 
  यह छोटे नेटवर्को को आपस मे जोड़ने के काम आते है, ताकि ये आपस मे जुड़कर एक बड़े नेटवर्क की भाँति कार्य कर सकें । ब्रिज एक बड़े या व्यस्त नेटवर्क को छोटे हिस्सों में वितरित करने का भी कार्य करता है । व्यस्त नेटवर्क को तब बांटा जाता है, जब नेटवर्क के एक हिस्से को अन्य हिस्सों से अलग रखा जाता हो।    

ब्रिज के कुछ मूल प्रकार निम्न है- 
   (i) लोकल ब्रिज (Local Bridge)
    यह लोकल एरिया नेटवर्क को सीधे आपस मे जोड़ता है। 
(ii) रिमोट ब्रिज (Remote Bridge)
       इस ब्रिज का प्रयोग दो-या-दो से अधिक दूर स्थित LAN को जोड़ने के लिए किया जाता है । प्रायः कम्पनी लेनों को इसलिए जोड़ती है, ताकि वे एक बड़े लैन की भाँति कार्य करें ।
(iii) वायरलेस ब्रिज (Wireless Bridge) 
         यह रिमोट ब्रिज की भांति हो सकते है । जब दो लेनों के ब्रिज को सीधी लाइन द्वारा जोड़ना सम्भव न हो, तो उन्हें वायरलेस ब्रिज द्वारा जोड़ा जा सकता है। ऐसे ब्रिज को सेटेलाइट ब्रिज भी कहा जाता है । 

राउटर 
इनका प्रयोग नेटवर्क में डाटा को कहीं भी भेजने के लिए करते है । इस प्रक्रिया को राउटिंग कहते है।  राउटर एक जंक्शन की भांति कार्य करते है । बड़े नेटवर्को में एक से अधिक रुट होते है, जिनके द्वारा सूचनाएं अपने गंतव्य (Destination) तक पहुंच सकती है। ऐसे में राउटर्स ये निश्चय करते है, कि किसी सूचना को किस रास्ते से उसके गंतव्य तक पहुँचाना है । 

 स्विच  
  स्विच वे हार्डवेयर होते है जो विभिन्न कम्प्यूटरों को एक LAN में जोड़ते है । स्विच को हब के स्थान पर उपयोग किया जाता है, हब तथा स्विच के मध्य एक महत्वपूर्ण अन्तर यह है कि हब स्वयं तक आने वाले डाटा को अपने प्रत्येक पोर्ट पर भेजता है, जबकि स्विच स्वंय तक आने वाले डाटा को केवल उसके गंतव्य (Destination) तक भेजता है। 
स्विच के कुछ मूल प्रकार निम्न है - 
  (i) अनमैनेज्ड स्विच (Unmanaged Switch) इस प्रकार के स्विच साधारण प्रकार के होते है, जिनमे कॉन्फ़िगरेशन करने का कोई विकल्प नही होता । ये प्लग एंड प्ले (Plug and Play) प्रकार के उपकरण होते है। इस प्रकार के स्विच का प्रयोग सामान्यतया घरों ,ऑफिसों में किया जाता है । 
(ii) मैनेज्ड स्विच (Managed Switch)
  इस प्रकार के स्विच का प्रयोग कार्य को नियंत्रित करने या सुधारने के लिए किया जाता है। ऐसे स्विचों के कॉन्फ़िगरेशन में कई परिवर्तन किए जा सकते है । मैनेज्ड स्विच भी दो प्रकार के होते है  - स्मार्ट (या इंटेलिजेंट) स्विच और एंटरप्राइज मैनेज्ड (फुली मैनेज्ड) स्विच । 

ब्रॉउटर
ब्राउज़र शब्द ब्रिज और राउटर से मिलकर बना है। यह एक ऐसा उपकरण होता है जो कभी राउटर की भांति और कभी ब्रिज की भाँति व्यवहार करता है । ये दो प्रकार के होते है - सिंगल - प्रोटोकॉल (Single Protocol) तथा मल्टी प्रोटोकॉल (Multi Protocol) . 

गेटवे 
  गेटवे एक ऐसी युक्ति है, जिसका प्रयोग दो विभिन्न नेटवर्क प्रोटोकॉल्स को जोड़ने के लिए किया जाता है। इन्हें प्रोटोकॉल परिवर्तक (Protocol Converter) भी कहते है । ये फ़ायरवॉल की भांति कार्य करते है। गेटवे का कार्य राउटर या स्विच की तुलना में अधिक जटिल है । 












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